कुछ मुद्दे राजनीति से परे होकर समाज के अस्तित्व से जुड़े होते हैं और उन पर यथोचित कार्य करना केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी होती हैं। पर विश्व में भारत ही केवल एक मात्र ऐसा देश है, जहां सामाजिक मुद्दों पर भी राजनीति होती हैं। माँ गंगा की निर्मलता, स्वच्छता, और सतत प्रवाह देश की आत्मा से जुड़ा ऐसा ही एक सामाजिक मुद्दा हैं। जिस पर लम्बे समय से की गई राजनीति का ही परिणाम हैं कि आज नदी के भविष्य पर ऐसा खतरा मंडरा रहा है, जो निकट भविष्य में इसके सूखने का कारण बन सकता है।
हालिया रिपोर्ट एक साइंस मैगज़ीन की है, जिसमें वैज्ञानिक तरीके से किए गए विश्लेषण के आधार पर यह बताया गया है कि 1972 के बाद से तेजी से गंगा में प्रवाहित होने वाले भू-जल के श्रोत खत्म होते गए और स्थिति ऐसी बन गई हैं कि ये आने वाले 30 सालों में गंगा में प्रवाह को रोक देगा। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी मानसूनी वर्षा समाप्त भी नहीं हुई है और गंगा ने अपने किनारों को छोड़ना प्रारम्भ कर दिया है। गंगा का मुद्दा 115 मिलियन लोगों के जीवन का मुद्दा है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि गंगा के सूखने की स्थिति में इसके आसपास रहने वाले लोगों का जीवन लगभग समाप्त हो जाएगा।
शोधकर्ताओं ने सैटेलाइट चित्रों और कैमिकल एनालिसिस के आधार पर अपनी रिपोर्ट दी है। विभिन्न राज्यों से होकर बहने के कारण गंगा से जुड़े अनुसन्धान का कोई एक आंकड़ा कभी भी सार्वजानिक नहीं हो पाता। पर हालिया आई रिपोर्ट ये दर्शाती है कि किस तरह 1970 के बाद से मैदानी इलाकों में भू जल के दोहन की स्थिति के कारण गंगा का पानी सूखता जा रहा हैं। उस पर इसके प्रवाह को रोकने का कार्य प्रदूषण कर रहा हैं। प्रदूषण के मामले पर तो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सरकार को कई बार खरी-खोटी सुनाई हैं पर सरकार इन सब पर खामोश है।
वादों और दावों की माने, तो गंगा मार्च 2019 तक स्वच्छ हो जाएंगी पर अब तो ऐसा लगता हैं कि सरकार की नाकामियों की वजह से निकट भविष्य में असंख्य लोगों का जीवन दाव पर लगने जा रहा है। जिसके बचाव का रास्ता अगर आज से भी अपनाया गया, तो स्थिति को सुधरने में लम्बा वक्त लगने वाला है। ऐसे में, व्यवस्था न सुधरने की गारंटी तो है, पर सुधरने की गारंटी लेने वाला कोई नहीं है। ■संपादकीय
हालिया रिपोर्ट एक साइंस मैगज़ीन की है, जिसमें वैज्ञानिक तरीके से किए गए विश्लेषण के आधार पर यह बताया गया है कि 1972 के बाद से तेजी से गंगा में प्रवाहित होने वाले भू-जल के श्रोत खत्म होते गए और स्थिति ऐसी बन गई हैं कि ये आने वाले 30 सालों में गंगा में प्रवाह को रोक देगा। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी मानसूनी वर्षा समाप्त भी नहीं हुई है और गंगा ने अपने किनारों को छोड़ना प्रारम्भ कर दिया है। गंगा का मुद्दा 115 मिलियन लोगों के जीवन का मुद्दा है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि गंगा के सूखने की स्थिति में इसके आसपास रहने वाले लोगों का जीवन लगभग समाप्त हो जाएगा।
शोधकर्ताओं ने सैटेलाइट चित्रों और कैमिकल एनालिसिस के आधार पर अपनी रिपोर्ट दी है। विभिन्न राज्यों से होकर बहने के कारण गंगा से जुड़े अनुसन्धान का कोई एक आंकड़ा कभी भी सार्वजानिक नहीं हो पाता। पर हालिया आई रिपोर्ट ये दर्शाती है कि किस तरह 1970 के बाद से मैदानी इलाकों में भू जल के दोहन की स्थिति के कारण गंगा का पानी सूखता जा रहा हैं। उस पर इसके प्रवाह को रोकने का कार्य प्रदूषण कर रहा हैं। प्रदूषण के मामले पर तो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सरकार को कई बार खरी-खोटी सुनाई हैं पर सरकार इन सब पर खामोश है।
वादों और दावों की माने, तो गंगा मार्च 2019 तक स्वच्छ हो जाएंगी पर अब तो ऐसा लगता हैं कि सरकार की नाकामियों की वजह से निकट भविष्य में असंख्य लोगों का जीवन दाव पर लगने जा रहा है। जिसके बचाव का रास्ता अगर आज से भी अपनाया गया, तो स्थिति को सुधरने में लम्बा वक्त लगने वाला है। ऐसे में, व्यवस्था न सुधरने की गारंटी तो है, पर सुधरने की गारंटी लेने वाला कोई नहीं है। ■संपादकीय
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