बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

पिछले कुछ समय से लगातार ऐसा लग रहा है कि सरकार मीडिया के भरोसे चल रही है। जब तक किसी घटना को लेकर मीडिया में हो-हल्ला नहीं मचता, लगातार सुर्खियां नहीं बनता और जनता दरबार नहीं लगता, सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है। हाल ही में मॉब लिचिंग को लेकर लगतार प्रिंट से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक सरकार पर उंगली उठी, तब जाकर सरकार थोड़ा जागी। ऐसे दो मुद्दों पर चर्चा करें, तो स्थिति की गंभीरता का स्पष्ट हो जाती हैं।

पहला मुद्दा भारत चीन की सीमा से जुड़ा डोकलाम का हैं, जहा पहली बार सरकार मीडिया रिपोर्ट के बाद जागी थी। देश की सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दे पर सरकार का किसी और पक्ष से जानकारी प्राप्त करना दुर्भाग्यपूर्ण हैं। वही एक बार मामला जब शांत हो गया, तो हाल फिलहाल मीडिया ने स्थिति स्पष्ट की कि डोकलाम में अब चीनी सेना गाहे-बगाहे घुसपैठ करती रहती हैं। पहले तो सरकार ने इसे नकारने का प्रयास किया पर अब सरकार भी मीडिया रिपोर्ट के आधार पर इस पर प्रतिक्रिया दे रही हैं। वास्तविकता क्या हैं, ये तो सरकार ही बता सकती हैं पर सरकार का इस प्रकार से बचाव के लहजे में जबाब देना ये जरूर साबित करता हैं कि कुछ तो गड़बड़ है, जिसका खुलासा सरकार आम जनता के सामने नहीं करना चाहती। मीडिया रिपोर्ट की माने तो, चीन अब डोकलाम क्षेत्र में 400 मीटर अंदर तक घुसपैठ कर रहा है। वो भी तब, जब भारतीय सेना वहा आज भी तैनात है और सरकार ने भरोसा दिलाया था कि डोकलाम विवाद सुलझा लिया गया हैं।

दूसरा मुद्दा मुजफ्फरपुर बिहार से है, जहां कि प्रदेश के आला अधिकारियों की संलिप्तता से ही शेल्टर होम में बच्चियों के साथ बलात्कार का मुद्दा सामने आया था। एक संस्थान की रिपोर्ट के बाद सरकार लगभग चार महीने तक खामोश रही और जब ये बात मीडिया रिपोर्टों की सुर्खिया बनी, तब सरकार ने कदम उठाना उचित समझा। मीडिया रिपोर्टों के बाद ही सरकार ने अपना बचाव करते हुए कुछ अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की। मामला इतने पर रुकता तो सरकार की इतनी किरकिरी नहीं होती। संस्थान की रिपोर्ट को पढ़े तो बिहार में 15 ऐसे शेल्टर होम हैं, जहां हालात मुजफ्फरपुर की ही तरह हैं। मुजफ्फरपुर के मामले में तो मीडिया के दबाब के कारण सरकार हरकत में आई पर बाकी जगहों पर उसने कोई कार्रवाई करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अब एक बार फिर जब मीडिया इस मुद्दे को सामाजिक परिपेक्ष में उठा रही है, तो सरकार हरकत में आ सकती है। मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि कुछ बच्चियां तो ऐसी हैं जो गर्भवती हैं और कुछ बच्चों को जन्म देने की स्थिति में। 15 सस्थान जिसके बारे में इस रिपोर्ट में लिखा गया हैं वो राज्य के विभिन्न भागों में हैं। इनमे पटना में AIKARD, मोतिहारी में (सखी), कैमूर में (ग्राम स्वराज सेवा संस्थान), मधेपुरा में (महिला चेतना विकास मंडल ) और मुंगेर में (नॉवेल्टी वेलफेयर सोसाईटी) हैं। इसके अलावा मुजफ्फरपुर, अररिया, गया और पटना में सरकार के सहयोग से चलने वाले केंद्र हैं जहा इस तरह की घटनाए हो रही हैं।

जिस तरह से रिपोर्ट प्रकाशित होने और सरकार की हिला हवाली इन मुद्दों पर रही, वो साफ़ करती हैं कि अगर आम जनता में मीडिया इन रिपोर्ट्स को न लाती, तो सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती। पिछले चार सालों में केंद्र और राज्य सरकारों की इस तरह की घटनाओं की एक लम्बी फेहरिस्त हैं। इसमें ये साफ़ देखा जा रहा हैं कि मीडिया तो अपना काम बखूबी निभा रही हैं और सरकार के क्रियाकलापों के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों पर भी अपनी रिपोर्ट का दायरा बढाती जा रही हैं। पर इन सब के बीच सरकार तब तक हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती हैं और सत्ता की मलाई खाती है। सरकारों की स्थिलता का ये आलम देश के लिए अत्यंत घातक हैं, जो लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार को केवल दिखावे के क्रियाकलाप के रूप में स्थापित करती हैं।
■संपादकीय 

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