‛केवल पुरुष व्यभिचारि’: सुप्रीम कोर्ट सहमत नहीं - Kashi Patrika

‛केवल पुरुष व्यभिचारि’: सुप्रीम कोर्ट सहमत नहीं


बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय ने सेक्शन 497 के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि व्यभिचार के मामले में केवल पुरुषों को सजा देना संविधान के समानता के मूल अधिकार को अतिक्रमित करता हैं।

जोसफ शाइन के दिए एक पीआईएल पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की पांच जजों की खंडपीठ जिसमे चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, आर ऍफ़ नरीमन, ए एम खानविलकर, डी वाई चंद्रचूड़, और इंदु मल्होत्रा शामिल हैं, ने कहा कि व्यभिचार के मामले में केवल पुरुषों को सजा देना संविधान के अनुछेद 14 का उल्लंघन है।

फरियादी के वकील कलीश्वरम राज ने अपना पक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा कि 1954 में न्यायालय ने सेक्शन 497 को सही ठहराते हुए कहा यह कानून सही हैं और अनुच्छेद 15 का हवाला दिया जो स्त्री और बच्चों के लिए विशेष कानून बनाने का अधिकार प्रदान करता हैं। पर वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा कैसे संभव हैं कि व्यभिचार के मामले में पुरुष तो दोषी ठहराया जा सकता है, पर महिला समान भागीदार होने के बावजूद निर्दोष है। 

एनजीओ की तरफ से अपना मत रखते हुए मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि व्यभिचार का कानून महिलाओं को पुरुष की जागीर साबित करता हैं, जहाँ व्यभिचार के मामले में अगर महिला अपने पति की आज्ञा से किसी दूसरे पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनती हैं तो उसमे कोई बुराई नहीं हैं पर अगर पति की आज्ञा न हो तो दूसरे पुरुष से बनाया यही सम्बन्ध व्यभिचार की श्रेणी में आएगा। 

सर्वोच्च न्यायालय ने इस बाबत अपनी बात रखी कि अगर व्यभिचार का कानून अनुच्छेद 14 के अंतर्गत अमान्य करार दिया जाता है, तो व्यभिचार के कानून में किसी को सजा का प्रावधान नहीं होगा और यह मामला तलाक और अन्य सिविल मामलों का आधार हो सकता हैं। 

सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए साफ़ कहा हैं कि व्यभिचार के कानून में सजा का प्रावधान ठीक है, क्योकि ऐसा न होने की स्थिति में समाज में व्यभिचार को बढ़ावा मिलेंगे, जो शादी की गरिमा को नुकसान पहुंचा सकता हैं। 

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