काशी सत्संग: विचारों में अमीरी-गरीबी - Kashi Patrika

काशी सत्संग: विचारों में अमीरी-गरीबी


एक बार एक अमीर आदमी अपने बेटे को गांव दिखाने ले गया, ताकि वह जान सके कि गांव में गरीब लोग कैसे रहते हैं। पिता-पुत्र दोनों ने शहर से बाहर और गांव के नजदीक अपने फार्म हाऊस में कुछ समय बिताया। फार्म हाऊस के सामने ही एक गरीब परिवार रहता था। फार्म हाऊस में कुछ समय बिताने के बाद पिता-पुत्र वापस शहर लौटने लगे। लौटते समय पिता ने पुत्र से पूछा, 'बेटा यात्रा कैसी रही?'

बेटे ने कहा,- ' बहुत अच्छी पापा।' तो तुमने देखा कि गरीब लोग कैसे रहते हैं? बेटे ने इसका उत्तर 'हां' में दिया। उसके बाद पिता ने बेटे से वापस प्रश्न किया कि अच्छा बताओ इस यात्रा से तुमने क्या सीखा? पिता यह जानना चाह रहा था कि बेटा कितना समझदार और ग्रहणशील है।

बेटे ने उत्तर दिया, “पिताजी, मैंने देखा कि हमारे पास तो एक ही कुत्ता है, जबकि उनके पास चार कुत्ते हैं। हमारे घर का स्वीमिंग पुल काफी छोटा है, जबकि वह बड़ी नहर में नहाते हैं। हमारे बगीचे में महंगे लालटेन लगे हैं, जबकि वह तारों भरे आकाश को देख सकते हैं। हमारे यहां नौकर हमारा ख्याल रखते हैं, जबकि उनके यहां पर सभी एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं। हम अपने खाने-पीने का सामान खरीदते हैं, लेकिन वह अपने खाने का सामान खुद उगाते हैं। हमारे घर की सुरक्षा के लिए चारदीवारी और चौकीदार हैं, जबकि उनके घर की रखवाली उनके दोस्त करते हैं।'

यह सुनकर लड़के का पिता निरुत्तर हो गया। अपने बेटे के इस उत्तर के साथ उसको पिछली बात भी ध्यान आ गई, जब वह अपने से कम संपन्न जागीरदार के घर गया था और उसके वैभव को देखकर कहा था कि यह लोग तो अपने से कम अमीर हैं। आज पिता को इस बात का बोध हुआ है कि अमीरी-गरीबी साधनों पर नहीं विचारों और भावनाओं में रहती है।
ऊं तत्सत...

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