हर इक ने कहा क्यूँ तुझे आराम न आया,
सुनते रहे हम लब पे तेरा नाम न आया।
दीवाने को तकती हैं तेरे शहर की गलियाँ,
निकला तो इधर लौट के बद-नाम न आया।
मत पूछ कि हम जब्त की किस राह से गुजरे,
ये देख कि तुझ पर कोई इल्जाम न आया।
क्या जानिए क्या बीत गई दिन के सफर में,
वो मुंतजिर-ए-शाम सर-ए-शाम न आया।
ये तिश्नगियाँ कल भी थीं और आज भी 'जैदी',
उस होंठ का साया भी मेरे काम न आया।
■ मुस्तफा जैदी



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