बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

देश को आजाद हुए भले सत्तर साल से ऊपर हो गया हो, लेकिन महिलाओं को आज भी रहने-जीने-खाने की स्वतंत्रता नहीं मिली। परोक्ष या अपरोक्ष रूप से महिलाओं की पुरुष पर निर्भरता कायम रखने के लिए समाज आज भी बरसों पुरानी कई परम्पराओं को ढो रहा है। ऐसा ही मामला है ‛तीन तलाक’। जिस पर पाबंदी लगाने की सरकार की कोशिश ने इसे एक बार फिर चर्चा का विषय बना दिया है। आश्चर्यजनक सच तो यह है कि विकास में हमसे कही पीछे माने जाने वाले पाकिस्तान में भी तीन तलाक की यह परंपरा 1956 में ही बैन हो चुकी है। इतना ही नहीं 22 इस्लामिक देश में भी ‛ट्रिपल तलाक’ पूरी तरह बैन है। फिर भी, भारत में केंद्र सरकार को तीन तलाक पर रोक के लिए विपक्ष को सहमत नहीं कर पा रही है।

ट्रिपल तलाक पर रोक की कसरत सरकार ने गुरुवार को फिर शुरू की और केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2017 में संशोधन करते हुए इसे पास कर दिया। आज राज्यसभा में इस पर मुहर लगाने की तैयारी थी, लेकिन  बीजेपी की लाख कोशिश के बावजूद भी ये बिल विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गया। खबरों के मुताबिक बीजेपी बिल के लिए अध्यादेश लाने की तैयारी कर रही है। महिलाओं के हक में बना यह बिल किसी तरह लोकसभा में पास होकर राज्यसभा में अटक गया। महिलाओं के हक में बात करने की हिम्मत सियासतदार नहीं जुटा पा रहे, क्योंकि मुस्लिम संगठन और मुस्लिम पुरुषों के वोट का सवाल है। धर्म के नाम पर चल रहे जुल्म की इस कुरीति का अंत हो गया, तो महिलाओं को स्वतंत्रता का एक अधिकार मिल जाएगा।

तीन तलाक को समझने की कोशिश करें तो, विवाह खत्म करने की इस सालों पुरानी परंपरा यानी शरीयत व्यवस्था के मुताबिक एक बार में तीन बार-तलाक..तलाक..तलाक बोल कर वैवाहिक संबंध खत्म किया जा सकता
है। तलाक-ए-बिद्दत की सबसे अमर्यादित व्यवस्था हलाला है, जिसमें तीन तलाक के बाद पति-पत्नी फिर से साथ रहना चाहे तो पुनर्विवाह से पहले महिला को कम से कम एक दिन के लिए दूसरे पुरुष की पत्नी बननी पड़ती है। हलाला के दौरान मुस्लिम महिलाओं को गंभीर मानसिक वेदना से गुजरना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट इस व्यवस्था को पहले ही शून्य, असंवैधानिक और गैरकानूनी करार दे चुकी है। साथ ही अदालत ने सरकार से छह महीने में फौरी तीन तलाक प्रथा के खिलाफ कानून बनाने को कहा था। उच्चतम न्यायालय के निर्देश का पालन करते हुए ही केंद्र सरकार ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2017 (द मुस्लिम वूमन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज बिल) संसद में पेश किया।
बहरहाल, सरकार तीन तलाक के खिलाफ विधेयक लाकर इसे कानून बनाने की कोशिश कर रही है, जिसमें जुबानी, लिखित या किसी इलेक्ट्रॉनिक (वॉट्सएप, ईमेल, एसएमएस) तरीके से एकसाथ तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) देना गैरकानूनी और गैर जमानती होगा। हालांकि, विपक्ष और अन्य संगठनों की आपत्ति के मद्देनजर विधेयक में कुछ संसोधन किया गया, जिसमें यह भी जोड़ा गया कि दोषी को जमानत देने का अधिकार मेजिस्ट्रेट के पास होगा।
कुल मिलाकर, राज्यसभा में बिल एक बार फिर राजनीति की भेंट चढ़ गया है। बीजेपी इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने की तैयारी में है। राह फिलहाल मुश्किल दिख रहा है, लेकिन ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून बना, तो इसी के साथ भारत में वर्षों से चले आ रहे एक रूढ़िवादी युग का अंत होगा और मुस्लिम महिलाओं को एक बड़े “तलाक रूपी” लटकती तलवार से मुक्ति मिलेगी। हालांकि,  यूँ कहें ‛बदलना बहुत कुछ अभी बाकी है, लेकिन एक बदलाव अभी काफी है।’
■ संपादकीय

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