गुरूवार 9 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि 'हम लक्ष्मण रेखा से घिरे हैं हमें कानून की घोषणा करने का तो अधिकार हैं पर विधि निर्माण का नहीं।' मामला है एक जनहित याचिका का जिसमें याचिकाकर्ता ने कोर्ट से गुहार लगाई हैं कि घृणित आपराधिक मामलों में लिप्त लोगों को चुनाव लड़ने से रोका जा सके।
सुप्रीम कोर्ट की दलील है हम जितना कर सकते है कर रहे हैं। हमने चुनाव लड़ने वालों से आपराधिक संलिप्तता का एफिडेविट देने, नोटा का अधिकार जैसे कई निर्णय दिए हैं, जो चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी और मजबूत बनाते हैं, पर हम विधि निर्माण नहीं कर सकते यह कार्य संसद का हैं।
पांच जजों की बेंच जिसमें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, एफ आर नरिमन, ए एम खानविलकर, डी वाई चंद्रचूड़, और इंदु मेहरोत्रा हैं, के सामने केंद्र की तरफ से बोलते हुए अटर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट संसद को सलाह दे सकती हैं कि वो आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए कानून का निर्माण करे। याचिका कर्ता की तरफ से बोलते हुए वरिष्ठ वकील दिनेश दिवेदी ने कहा कि कानून में इस मामले पर निर्वात की स्थिति कायम हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के संसद को सलाह देने की स्थिति में भी कठोर कानून का रूप नहीं ले सकता। इससे आपराधिक लोगों को चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है। आम मत पर अपनी बात रखते हुए कृष्णन वेणुगोपाल ने कहा कि संसद कभी कोई ऐसा कानून नहीं बनाएगी जो आपराधिक प्रवित्ति के लोगो को चुनाव लड़ने से रोक सके, क्योंकि ऐसे लोगों के चुनाव जीतने के आसार ज्यादा हैं। आप को बताते चले कि संविधान का अनुच्छेद 102(1) किसी भी राजनीतिक व्यक्ति को उसके पद से हटाने के लिए दिशानिर्देश देता हैं जिसमें अपराध का कोई जिक्र ही नहीं हैं।
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