लाखों जीवन को पनपने की वजह ही नहीं, बल्कि मृत्यु उपरांत मोक्ष का वचन देने वाली मां गंगा अब पृथ्वी पर लगता है स्वयं अंतिम सांस ले रही हैं। और उनमें अपार श्रद्धा रखने वाले उनकी मृत्यु के प्रत्यक्षदर्शी बने मौन खड़े हैं। आखिर सवाल आस्था ही नहीं लगभग 1150 लाख जिंदगियों का भी है, जो इस विशाल नदी के सहारे और किनारे पनपी है। लेकिन दिन-ब-दिन सिमटती और नाले में बदलती गंगा लगता है दावों और वादों तले दबकर अपना अस्तित्व खो देंगी। मंगलवार को केंद्र सरकार के गंगा सफाई के वादे पर चुटकी लेते हुए कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्वीट किया, “एक ऐतिहासिक तथ्य है कि अकबर सिर्फ गंगा का पानी पीता था, क्योंकि उसे लगता था कि गंगा का पानी पीने से सभी प्रकार की बीमारियां खत्म हो जाती हैं, लेकिन आज ऐसा हाल है कि अगर आपको अकबर से मिलना है, तो आपको गंगा का पानी पीना पड़ेगा।”
बहरहाल, विपक्ष की बात अनसुनी कर दे, तो भी जमीनी स्थिति इसी ओर इशारा करती है कि सफाई के नाम पर सरकारी प्रयास लगभग शून्य है। परिणामतः पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में ही गंगा नदी में प्रदूषण पहले की तुलना में और बढ़ गया है। हालांकि, सरकार कुंभ आयोजन से पहले गंगा स्वच्छ होने का दावा कर रही है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट पर गौर करें, तो गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय से आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी में यह बात सामने आई है कि इस प्रोजेक्ट के लिए 20,000 करोड़ रुपए आवंटित किया जा चुका है, जो कि वर्ष 2015-2020 के बीच खर्च होना है। अब तक नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत कुल 221 प्रोजेक्ट विभिन्न तरह की गतिविधियों के लिए स्वीकृत किए गए हैं। इन गतिविधियों में 22238.73 करोड़ रुपए की लागत से म्युनिसिपल सीवेज ट्रीटमेंट, औद्योगिक कचरे का ट्रीटमेंट, नदी की सतह की सफाई आदि शामिल है। इनमें से 58 प्रोजेक्ट पूरे कर लिए गए हैं। यानी कुल स्वीकृत प्रोजेक्ट्स में से एक चौथाई ही पूरे किए जा सके हैं।
इसी तरह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के तहत 105 सीवरेज इफ्रास्ट्रक्चर्स और एसटीपी प्रोजेक्ट्स स्वीकृत किए जा चुके हैं, जिनसे बिना ट्रीट किए हुए 3293.68 MLD सीवेज को गंगा नदी में सीधे गिरने से रोका जा सकेगा। इनमें कुल 26 प्रोजेक्ट अब तक पूरे किए जा चुके हैं। यानी यहां भी स्वीकृत प्रोजेक्ट्स में से सिर्फ एक चौथाई ही पूरे किए जा सके हैं। ऐसे में, सरकार सिर्फ 5 से 6 महीने में ‛गंगा साफ हो जाएंगी’ के दावे में कितनी सच्चाई है समझना मुश्किल नहीं है।
मुश्किल यह है कि सरकार या विपक्ष सबका सरोकार सिर्फ तमाशा देखने और मुद्दों को भुनाने तक से रह गया है। इन सबके बीच लापरवाही का आलम बरकरार है। और किनारों से सिकुड़ती हुईं गंगा शायद अब स्वयं अपने अंत और इस धरती से मोक्ष का इंतजार कर रही हैं।
■ संपादकीय
बहरहाल, विपक्ष की बात अनसुनी कर दे, तो भी जमीनी स्थिति इसी ओर इशारा करती है कि सफाई के नाम पर सरकारी प्रयास लगभग शून्य है। परिणामतः पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में ही गंगा नदी में प्रदूषण पहले की तुलना में और बढ़ गया है। हालांकि, सरकार कुंभ आयोजन से पहले गंगा स्वच्छ होने का दावा कर रही है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट पर गौर करें, तो गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय से आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी में यह बात सामने आई है कि इस प्रोजेक्ट के लिए 20,000 करोड़ रुपए आवंटित किया जा चुका है, जो कि वर्ष 2015-2020 के बीच खर्च होना है। अब तक नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत कुल 221 प्रोजेक्ट विभिन्न तरह की गतिविधियों के लिए स्वीकृत किए गए हैं। इन गतिविधियों में 22238.73 करोड़ रुपए की लागत से म्युनिसिपल सीवेज ट्रीटमेंट, औद्योगिक कचरे का ट्रीटमेंट, नदी की सतह की सफाई आदि शामिल है। इनमें से 58 प्रोजेक्ट पूरे कर लिए गए हैं। यानी कुल स्वीकृत प्रोजेक्ट्स में से एक चौथाई ही पूरे किए जा सके हैं।
इसी तरह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के तहत 105 सीवरेज इफ्रास्ट्रक्चर्स और एसटीपी प्रोजेक्ट्स स्वीकृत किए जा चुके हैं, जिनसे बिना ट्रीट किए हुए 3293.68 MLD सीवेज को गंगा नदी में सीधे गिरने से रोका जा सकेगा। इनमें कुल 26 प्रोजेक्ट अब तक पूरे किए जा चुके हैं। यानी यहां भी स्वीकृत प्रोजेक्ट्स में से सिर्फ एक चौथाई ही पूरे किए जा सके हैं। ऐसे में, सरकार सिर्फ 5 से 6 महीने में ‛गंगा साफ हो जाएंगी’ के दावे में कितनी सच्चाई है समझना मुश्किल नहीं है।
मुश्किल यह है कि सरकार या विपक्ष सबका सरोकार सिर्फ तमाशा देखने और मुद्दों को भुनाने तक से रह गया है। इन सबके बीच लापरवाही का आलम बरकरार है। और किनारों से सिकुड़ती हुईं गंगा शायद अब स्वयं अपने अंत और इस धरती से मोक्ष का इंतजार कर रही हैं।
■ संपादकीय
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