कपूर खानदान ने क्लासिक फिल्मों के गवाह रहे आरके स्टूडियो को बेचने का फैसला किया है, जिसे बचाने के लिए कभी नरगिस ने किया था यह सब...
हिंदी सिने जगत की कालजयी फिल्मों के मंचन का गवाह रहा आरके स्टूडियो अब उन महान कृतियों की याद बनकर भी नहीं रह जाएगा, क्योंकि यह बिकने जा रहा है। कभी आरके बैनर तले बनी 'आग', ‘बरसात’, ‘आवारा’, ‘श्री 420’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘बॉबी’, ‘सत्यम शिव सुंदरम’, ‘राम तेरी गंगा मैली' जैसी मशहूर फिल्मों के निर्माण के साक्षी रहे इस स्टूडियो में आरके बैनर के तले बनी आखिरी फिल्म ‘आ अब लौट चलें' रही। इसे ऋषि कपूर ने निर्देशित किया था।
‛आरके’ के लिए नरगिस का समर्पण
एक समय ऐसा भी आया जब आरके स्टूडियो के पास पैसों की कमी होने लगी। उस मुश्किल वक्त में राज कपूर का साथ हिंदी सिनेमा की महान अभिनेत्री नरगिस ने दिया। मधु जैन अपनी किताब 'फर्स्ट फैमिली ऑफ इंडियन सिनेमा- द कपूर्स' में लिखती हैं, "नरगिस ने अपना दिल, अपनी आत्मा और यहां तक कि अपना पैसा भी राज कपूर की फिल्मों में लगाना शुरू कर दिया। जब आरके स्टूडियो के पास पैसों की कमी हुई, तो नरगिस ने अपने सोने के कंगन तक बेच डाले। उन्होंने आरके फिल्म्स के कम होते खजाने को भरने के लिए बाहरी प्रोड्यूसरों की फिल्मों जैसे अदालत, घर संसार और लाजवंती में काम किया।' फिल्म ‛बॉबी' की सफलता के बाद राज कपूर के सितारे फिर जगमगाने लगे।
क्या है आर. के. स्टूडियो बेचने की वजह?
मुंबई के चेंबूर इलाके में 2 एकड़ में फैले आरके स्टूडियो का निर्माण 1948 में राज कपूर ने करवाया था। स्टूडियो का नाम इसी महान शोमैन राज कपूर के नाम पर रखा गया। पिछले साल 16 सितंबर को स्टूडियो में "सुपर डांसर'' के सेट पर
आग लग गई थी, जिससे इसका एक हिस्सा जल गया था। कपूर परिवार का कहना है कि पिछले साल आग लगने के बाद इसका पुनर्निर्माण कराना आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं है। क्योंकि पुनर्निर्माण पर काफी खर्च आएगा, जबकि पिछले काफी समय से इस स्टूडियो को ज्यादा लोग शूटिंग के लिए किराये पर नहीं ले रहे थे।
हिंदी सिने जगत की कालजयी फिल्मों के मंचन का गवाह रहा आरके स्टूडियो अब उन महान कृतियों की याद बनकर भी नहीं रह जाएगा, क्योंकि यह बिकने जा रहा है। कभी आरके बैनर तले बनी 'आग', ‘बरसात’, ‘आवारा’, ‘श्री 420’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘बॉबी’, ‘सत्यम शिव सुंदरम’, ‘राम तेरी गंगा मैली' जैसी मशहूर फिल्मों के निर्माण के साक्षी रहे इस स्टूडियो में आरके बैनर के तले बनी आखिरी फिल्म ‘आ अब लौट चलें' रही। इसे ऋषि कपूर ने निर्देशित किया था।
‛आरके’ के लिए नरगिस का समर्पण
एक समय ऐसा भी आया जब आरके स्टूडियो के पास पैसों की कमी होने लगी। उस मुश्किल वक्त में राज कपूर का साथ हिंदी सिनेमा की महान अभिनेत्री नरगिस ने दिया। मधु जैन अपनी किताब 'फर्स्ट फैमिली ऑफ इंडियन सिनेमा- द कपूर्स' में लिखती हैं, "नरगिस ने अपना दिल, अपनी आत्मा और यहां तक कि अपना पैसा भी राज कपूर की फिल्मों में लगाना शुरू कर दिया। जब आरके स्टूडियो के पास पैसों की कमी हुई, तो नरगिस ने अपने सोने के कंगन तक बेच डाले। उन्होंने आरके फिल्म्स के कम होते खजाने को भरने के लिए बाहरी प्रोड्यूसरों की फिल्मों जैसे अदालत, घर संसार और लाजवंती में काम किया।' फिल्म ‛बॉबी' की सफलता के बाद राज कपूर के सितारे फिर जगमगाने लगे।
क्या है आर. के. स्टूडियो बेचने की वजह?
मुंबई के चेंबूर इलाके में 2 एकड़ में फैले आरके स्टूडियो का निर्माण 1948 में राज कपूर ने करवाया था। स्टूडियो का नाम इसी महान शोमैन राज कपूर के नाम पर रखा गया। पिछले साल 16 सितंबर को स्टूडियो में "सुपर डांसर'' के सेट पर
आग लग गई थी, जिससे इसका एक हिस्सा जल गया था। कपूर परिवार का कहना है कि पिछले साल आग लगने के बाद इसका पुनर्निर्माण कराना आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं है। क्योंकि पुनर्निर्माण पर काफी खर्च आएगा, जबकि पिछले काफी समय से इस स्टूडियो को ज्यादा लोग शूटिंग के लिए किराये पर नहीं ले रहे थे।
‛दिल पर पत्थर रखकर किया फैसला’
खुद ऋषि कपूर ने कहा कि वे अपने दिल पर पत्थर रखकर ये फैसला ले रहे हैं। कपूर परिवार इस प्रॉपर्टी को बेचने के लिए बिल्डर्स, कॉर्पोरेट्स और डेवेलपर्स के संपर्क में है। जल्द से जल्द इसे बेचने की तैयारी हो रही है।
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