सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अनुच्छेद 497 पर सुनवाई करते हुए सरकार के द्वारा डाले गए पीआईएल को नकार दिया है। इसमें सरकार ने मांग की थी कि व्यभिचार को कानून रहने दिया जाए, क्योंकि यह विवाह जैसे सामाजिक बंधन को मजबूती प्रदान करता हैं। सरकार की तरफ से पीआईएल पर बोलते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने कहा कि विवाह जैसे सामाजिक बंधन को मजबूत बनाने के लिए व्यभिचार को कानून का दर्जा रहने देना चाहिए, अगर आवश्यकता हो तो इसे जेंडर न्यूट्रल की श्रेणी में डाला जा सकता हैं, जिसके तहत महिला और पुरुष दोनों को विवाह उपरांत किसी पराए व्यक्ति से शारीरिक सम्बन्ध बनाने पर दोषी करार दिया जा सके। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह जेंडर न्यूट्रल न होकर सह संवेदी है, जिसमें दो पक्ष किसी बात पर सहमत हैं।
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच जिसमें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आर ऍफ नरीमन, ए एम खानविलकर, डी वाई चंद्रचूड़, और इंदु मल्होत्रा व्यभिचार मामले की सुनवाई कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट का अभी तक का मत हैं कि व्यभिचार को कानून नहीं रखा जा सकता, जो अपरोक्ष रूप से किसी महिला को पुरुष की संपत्ति साबित करता है।
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