मेरा संदेश छोटा-सा है- प्रेम करो। सबको प्रेम करो। और ध्यान रहे कि इससे बड़ा कोई भी संदेश न है, न हो सकता है। प्रेम जोड़ता है, इसलिए प्रेम ही परम ज्ञान है। क्योंकि जो तोड़ता है, वह ज्ञान ही कैसे होगा...
मैंने सुना है : एक संध्या किसी नगर से एक अर्थी निकलती थी। बहुत लोग उस अर्थी के साथ थे। और, कोई राजा नहीं, बस एक भिखारी मर गया था। जिसके पास कुछ भी नहीं था, उसकी विदाई में इतने लोगों को देख सभी आश्चर्य चकित थे। एक बड़े भवन की नौकरानी ने अपने मालकिन को जाकर कहा कि किसी भिखारी की मृत्यु हो गई है और वह स्वर्ग गया है। मालकिन को मृतक के स्वर्ग जाने की इस अधिकारपूर्ण घोषणा पर हंसी आई और उसने पूछा : ''क्या तूने उसे स्वर्ग में प्रवेश करते देखा है?'' वह नौकरानी बोली, ''निश्चय ही मालकिन! यह अनुमान तो बिलकुल सहज है, क्योंकि जितने भी लोग उसकी अर्थी के साथ थे, वे सभी फूट-फूट कर रो रहे थे। क्या यह तय नहीं है कि मृतक जिनके बीच था, उन सब पर ही अपने प्रेम के बीज छोड़ गया है?''
प्रेम के चिन्ह- मैं भी सोचता हूं, तो दिखता है कि प्रेम के चिन्ह ही तो प्रभु के द्वार की सीढ़ियां हैं। प्रेम के अतिरिक्त परमात्मा तक जाने वाला मार्ग ही कहां हैं? परमात्मा को उपलब्ध हो जाने का इसके अतिरिक्त और क्या प्रमाण है कि हम इस पृथ्वी पर प्रेम को उपलब्ध हो गए थे! पृथ्वी पर जो प्रेम है, परलोक में वही परमात्मा है। प्रेम जोड़ता है, इसलिए प्रेम ही परम ज्ञान है। क्योंकि, जो तोड़ता है, वह ज्ञान ही कैसे होगा? जहां ज्ञाता से ज्ञेय पृथक है, वहीं अज्ञान है।
■ (सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)
मैंने सुना है : एक संध्या किसी नगर से एक अर्थी निकलती थी। बहुत लोग उस अर्थी के साथ थे। और, कोई राजा नहीं, बस एक भिखारी मर गया था। जिसके पास कुछ भी नहीं था, उसकी विदाई में इतने लोगों को देख सभी आश्चर्य चकित थे। एक बड़े भवन की नौकरानी ने अपने मालकिन को जाकर कहा कि किसी भिखारी की मृत्यु हो गई है और वह स्वर्ग गया है। मालकिन को मृतक के स्वर्ग जाने की इस अधिकारपूर्ण घोषणा पर हंसी आई और उसने पूछा : ''क्या तूने उसे स्वर्ग में प्रवेश करते देखा है?'' वह नौकरानी बोली, ''निश्चय ही मालकिन! यह अनुमान तो बिलकुल सहज है, क्योंकि जितने भी लोग उसकी अर्थी के साथ थे, वे सभी फूट-फूट कर रो रहे थे। क्या यह तय नहीं है कि मृतक जिनके बीच था, उन सब पर ही अपने प्रेम के बीज छोड़ गया है?''
प्रेम के चिन्ह- मैं भी सोचता हूं, तो दिखता है कि प्रेम के चिन्ह ही तो प्रभु के द्वार की सीढ़ियां हैं। प्रेम के अतिरिक्त परमात्मा तक जाने वाला मार्ग ही कहां हैं? परमात्मा को उपलब्ध हो जाने का इसके अतिरिक्त और क्या प्रमाण है कि हम इस पृथ्वी पर प्रेम को उपलब्ध हो गए थे! पृथ्वी पर जो प्रेम है, परलोक में वही परमात्मा है। प्रेम जोड़ता है, इसलिए प्रेम ही परम ज्ञान है। क्योंकि, जो तोड़ता है, वह ज्ञान ही कैसे होगा? जहां ज्ञाता से ज्ञेय पृथक है, वहीं अज्ञान है।
■ (सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)
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