चीन का एक सेनापति एक सन्त के पास स्वर्ग नरक की व्याख्या पूछने आया। संत ने मौखिक उत्तर से काम न बनता देखा, तो उसे प्रत्यक्ष दिखाने का उपाय सोचा।
संत ने सेनापति से पूछा-आप कौन है? उत्तर मिला “सेनापति”। इस पर संत हंस पड़े और बोले-लगते तो भिखारी से हो? सेनापति को क्रोध आ गया और वह म्यान से तलवार खींचने लगा।
संत ने कहा- यह तो लकड़ी की सी मालूम पड़ती है। तुम्हारी कलाइयों में इतना बल भी है, जो मेरी गरदन काट सको। इस पर सेनापति आपे से बाहर हो गया और गाली देते हुए उन्हें मारने दौड़ा। संत इस बार फिर सौम्य हंसी हंसे और बोले- “देखा यही नरक है, जिसमें तुम फंस गए।” सेनापति ने विचार किया, तो उसे लज्जा आई और संत से क्षमा मांगने लगा, अब उसको शांति थी। संत ने उससे कहा-देखा यही स्वर्ग है।
मित्रों, क्रोध में नरक और शांति में स्वर्ग है। इसमें से किसी एक को चुन लेना हर मनुष्य की अपनी मर्जी होती है।
ऊं तत्सत...
संत ने सेनापति से पूछा-आप कौन है? उत्तर मिला “सेनापति”। इस पर संत हंस पड़े और बोले-लगते तो भिखारी से हो? सेनापति को क्रोध आ गया और वह म्यान से तलवार खींचने लगा।
संत ने कहा- यह तो लकड़ी की सी मालूम पड़ती है। तुम्हारी कलाइयों में इतना बल भी है, जो मेरी गरदन काट सको। इस पर सेनापति आपे से बाहर हो गया और गाली देते हुए उन्हें मारने दौड़ा। संत इस बार फिर सौम्य हंसी हंसे और बोले- “देखा यही नरक है, जिसमें तुम फंस गए।” सेनापति ने विचार किया, तो उसे लज्जा आई और संत से क्षमा मांगने लगा, अब उसको शांति थी। संत ने उससे कहा-देखा यही स्वर्ग है।
मित्रों, क्रोध में नरक और शांति में स्वर्ग है। इसमें से किसी एक को चुन लेना हर मनुष्य की अपनी मर्जी होती है।
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