दिल को सुकून रूह को आराम आ गया,
मौत आ गयी कि दोस्त का पैगाम आ गया।
जब कोई जिक्रे-गर्दिशे-अय्याम आ गया,
बेइख्तियार लब पे तेरा नाम आ गया।
दीवानगी हो, अक्ल हो, उम्मीद हो कि आस,
अपना वही है वक्त पे जो काम आ गया।
दिल के मुआमलात में नासेह ! शिकस्त क्या,
सौ बार हुस्न पर भी ये इल्जाम आ गया।
सैयाद शादमां है मगर ये तो सोच ले,
मैं आ गया कि साया तहे-दाम आ गया।
दिल को न पूछ मार्काए-हुस्नों-इश्क में,
क्या जानिये गरीब कहां काम आ गया।
ये क्या मुकामे-इश्क है जालिम कि इन दिनों,
अक्सर तिरे बगैर भी आराम आ गया।
■ जिगर मुरादाबादी
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