काशी सत्संग: वृद्ध सीख - Kashi Patrika

काशी सत्संग: वृद्ध सीख


एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया। खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया। रेस्टॉरेंट में बैठे दूसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे। लेकिन वृद्ध का बेटा शांत था।
खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया। उनके कपड़े साफ किए, उनका चेहरा साफ किया, उनके बालों में कंघी की, चश्मा पहनाया और फिर बाहर लाया। सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे। बेटे ने बिल दिया और वृद्ध के साथ बाहर जाने लगा। तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा "क्या तुम्हें नहीं लगता कि अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो? "
बेटे ने जवाब दिया, "नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर नहीं जा रहा।"
वृद्ध ने कहा "बेटे, तुम यहां छोड़ कर जा रहे हो, प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद (आशा)।"
आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता-पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसंद नहीँ करते और कहते हैं कि आप से चला तो जाता नहीं, ठीक से खाया भी नहीं जाता, आप बाहर जाकर क्या करेंगे? इस दौरान लोग भूल जाते हैं कि जब आप छोटे थे, तब आपके माता-पिता आप को अपनी गोद में उठाकर ले जाया करते थे। मां आपको अपने हाथ से खाना खिलाती थी और खाना गिर जाने पर डांट नहीं प्यार जताती थी। लेकिन वहीँ माता-पिता बुढापे में आपको बोझ क्यों लगने लगते हैं? उनकी सेवा करना संतान का कर्तव्य है, क्योंकि एक दिन आप भी बूढ़े होगें।
ऊं तत्सत...

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