आज कुछ भी नहीं मेरे शब्दों के गुलदस्ते में,
कभी-कभी मेरी खामोशियां भी पढ़ लिया करो!!
ध्यान रखना, तुम न थे, तब भी दुनिया चली जाती थी। तुम न होगे, तब भी चली जाएगी। यह जो थोड़ी देर का तुम्हारा होना है, इसे उपद्रव मत बनाओ। इस थोड़ी देर के होने को ऐसा शांत कर लो कि यह करीब-करीब न होने जैसा हो जाए। तुम न थे, फिर तुम न हो जाओगे। यह बीच की जो थोड़ी देर के लिए उथल-पुथल है, इसको भी ऐसी शांति से गुजार दो, जैसे कि न होना था पहले, न होना अब भी है, न होना आगे भी होगा; तो तुम अपने स्वभाव का अनुभव कर लोगे।
यह जो थोड़ी देर के लिए आंख खुली है जीवन में, इससे तुम अपने न होने को पहचान लो। न होने की सतत धार तुम्हारे भीतर बह रही है। कल तुम न थे, कल फिर तुम न हो जाओगे। यह जो आज की थोड़ी घड़ी तुम्हें होने की मिली है, इसमें पहचान लो कि नीचे सतत धार न होने की अभी भी बह रही है। वह न होना ही स्वयं को जानना है। वह न होना ही परमात्मा को पहचान लेना है। बुद्ध ने उसे निर्वाण कहा है।
■ ओशो
कभी-कभी मेरी खामोशियां भी पढ़ लिया करो!!
ध्यान रखना, तुम न थे, तब भी दुनिया चली जाती थी। तुम न होगे, तब भी चली जाएगी। यह जो थोड़ी देर का तुम्हारा होना है, इसे उपद्रव मत बनाओ। इस थोड़ी देर के होने को ऐसा शांत कर लो कि यह करीब-करीब न होने जैसा हो जाए। तुम न थे, फिर तुम न हो जाओगे। यह बीच की जो थोड़ी देर के लिए उथल-पुथल है, इसको भी ऐसी शांति से गुजार दो, जैसे कि न होना था पहले, न होना अब भी है, न होना आगे भी होगा; तो तुम अपने स्वभाव का अनुभव कर लोगे।
यह जो थोड़ी देर के लिए आंख खुली है जीवन में, इससे तुम अपने न होने को पहचान लो। न होने की सतत धार तुम्हारे भीतर बह रही है। कल तुम न थे, कल फिर तुम न हो जाओगे। यह जो आज की थोड़ी घड़ी तुम्हें होने की मिली है, इसमें पहचान लो कि नीचे सतत धार न होने की अभी भी बह रही है। वह न होना ही स्वयं को जानना है। वह न होना ही परमात्मा को पहचान लेना है। बुद्ध ने उसे निर्वाण कहा है।
■ ओशो
No comments:
Post a Comment