प्रेम या अहंकार! अंतर पहचानो - Kashi Patrika

प्रेम या अहंकार! अंतर पहचानो

अहंकार के जाते ही न तो तुम्हारी घृणा बचेगी, न तुम्हारा तथाकथित प्रेम बचेगा। दोनों विलीन हो जाएंगे। और तब एक नए, एक बिल्कुल नवीन प्रेम का सूत्रपात होता है। उस प्रेम का जो दिव्य है, उस प्रेम का जो प्रार्थनापूर्ण है, उस प्रेम का जो परमात्मा की ही आभा है...

मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी मरणशैय्या पर पड़ी थी। अंतिम क्षण में उसने नसरुद्दीन से कहा कि नसरुद्दीन, अब जाते समय झूठ को क्यों साथ ले जाऊं, एक बात तुम से कह दूं और तुम से क्षमा भी मांग लूं। फिर मिलना नहीं होगा, इसलिए यह बोझ अपनी छाती पर नहीं ले जाना चाहती हूं। इसे पंद्रह साल से ढो रही हूं। मुझे क्षमा कर दोगे?
नसरुद्दीन ने कहा, बिल्कुल, क्षमा कर दूंगा, क्षमा किया। तू बोल, क्या अड़चन है? उसकी पत्नी ने कहा, अड़चन यह है कि तुम्हारे मित्र से मेरा प्रेम था और मैं तुम्हें धोखा देती रही। नसरुद्दीन ने कहा, बिल्कुल फिक्र ही मत कर! तू भी मुझे क्षमा कर! तू जानती है कि तू क्यों मर रही है? मैंने तुझे जहर पिलाया है। तू मेरा बोझ कम कर दे, मैं तेरा बोझ कम कर देता हूं, बात खत्म!
जिसको तुम प्रेम करते हो, उसको जहर पिला सकते हो। अगर तुम्हारे अहंकार के विपरीत हो जाए, उसका व्यवहार। तुम उसे गोली मार दे सकते हो। जिसकी जरा-जरा सी बातों की तुम चिंता करते हो, उसको तुम पहाड़ से ढकेल सकते हो। तो तुम्हारा प्रेम, प्रेम नहीं है। जो प्रेम घृणा बन सकता है, वह प्रेम नहीं है। प्रेम और घृणा कैसे बन सकता है!
तुम्हारी घृणा क्या है? तुम्हारे प्रेम का ही शीर्षासन करता हुआ रूप है। जिनके द्वारा तुम्हारे अहंकार में बाधा पड़ती है, उनसे तुम्हें घृणा, जिनसे तुम्हारे अहंकार में सहयोग मिलता है, उनसे तुम्हें प्रेम। अहंकार के जाते ही न तो तुम्हारी घृणा बचेगी, न तुम्हारा तथाकथित प्रेम बचेगा। दोनों विलीन हो जाएंगे। और तब एक नए, एक बिल्कुल नवीन प्रेम का सूत्रपात होता है। उस प्रेम का जो दिव्य है, उस प्रेम का जो प्रार्थनापूर्ण है, उस प्रेम का जो परमात्मा की ही आभा है।
ईष्या, घृणा, लोभ, मोह, मत्सर, ये सब अहंकार की ही अलग-अलग प्रतिछवियां हैं। अहंकार बहुरूपिया है। लोभ का क्या अर्थ होता है? अहंकार खाली है, भरो इसे। बहुत धन होगा तो बहुत अहंकार होगा। उतनी अकड़ होगी। जितना धन कम हो जाएगा, उतना अहंकार होगा। बड़ा पद होगा, तो उतना अहंकार होगा। पद गया कि अहंकार गया। अहंकार ही लोभ में ले जाता है। लोभ का मतलब इतना है कि भरो मुझे। मुझे बड़ा करो।
■ ओशो

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