एक बार एक संत महात्मा आश्रम में एक लड़का आया और बोला कि हे गुरुदेव मुझे भी आप अपने आश्रम में रख लीजिए और गुरुदीक्षा दे दीजिए ताकि मैं भी प्रभु भक्ति में लग जाऊं । संत महात्मा जी ने उनको अपने आश्रम में रहने की अनुमति दे दी और उसको ध्यान भक्ति करने लगा दिया । उन्होंने एक दिन अपने उस शिष्य को बोला की बेटा जाओ, पास के गांव से भिक्षा मांगकर ले आओ ताकि आप सभी शिष्य भोजन कर सकें । शिष्य बोला गुरुदेव मैंने कभी भी भिक्षा नहीं मांगी है, कृपया मुझे बता दें कि मैं दीक्षा कैसे माँगू । गुरुदेव ने बताया कि आप गाँव में जाकर आवाज देना कि मुझे गुरु मिल गए बंदी छोड़ भिक्षा दे दो, मुझे गुरु मिल गए बंदी छोड़ भिक्षा दे दो ।
शिष्य ने गुरु के वचनों को सुनकर गांव में जाकर वैसे ही आवाज दी और भिक्षा इकट्ठा करने में लग लगा । गांव में जब एक घर के पास वह पहुंचा तो उस घर में घर के मालिक ने एक तोते को पिंजरे में रखा हुआ था । पिंजरे में रहने वाला तोता उस लड़के से बोला कि जब आपके गुरु सभी की बंदी छुड़वा सकते हैं तो क्या वह मेरी भी बंदी छुड़वा सकते हैं । शिष्य ने बोला इसके बारे में तो मुझे पता नहीं । तोता बोला मेरी प्रार्थना है कि कल आप उनसे पूछ कर आना कि क्या वह मेरी बंदी को भी छुड़वा सकते हैं । शिष्य भिक्षा लेकर पुन: आश्रम में आ गया।
जब शाम को वह शिष्य अपने गुरुदेव के चरणों को दबाकर उनकी सेवा कर रहा था तो शिष्य को उस तोते की बात याद आ गई । शिष्य ने विनम्रतापूर्वक गुरुदेव से पूछा गुरुदेव जब मैं भिक्षा मांग रहा था और आवाज़ लगा रहा था कि मुझे गुरु मिल गए बंदी छोड़ भिक्षा दे दो तो एक तोते ने मुझसे पूछा कि जब आपके गुरु सभी की बंदी छुड़वा सकते हैं तो क्या वह मेरी भी बंदी छोड़ छुड़वा देंगे । जैसे ही शिष्य ने यह शब्द कहे तुरंत उसके गुरुदेव के हाथ पैर कांपने लगे और गुरुदेव पीछे की ओर गिरकर लगभग बेहोश हो गए । शिष्य ने घबरा कर उनको पानी वगैरह पिलाया । हवा के लिए पंखा किया । गुरुदेव कुछ मिनट के बाद होश में आकर बैठ गए । अगले दिन जब फिर गुरुदेव ने इस लड़के को गांव से भिक्षा लाने के लिए कहा तो जब वह उस तोते के घर के पास से गुजरा तो तोते ने लड़के से पूछा कि क्या आपने अपने गुरुदेव से पूछा कि क्या वह मेरी बंदी को छुड़वा देंगे ।
तोते की बात को सुनकर शिष्य ने बड़े गुस्से से कहा कि भाई तेरी बात को तो मैंने पूछा था पर तेरी बात को तो मैं आज के बाद कभी नहीं पूछूंगा क्योंकि जैसे ही मैंने तेरी बात को पूछा तो गुरुदेव के शरीर में कंपन हुआ और वह पीछे की तरफ लुढ़क कर बेहोश हो गए । तोता इशारे को समझ गया उसने बोला ठीक है भाई आपका बहुत-बहुत धन्यवाद । पिंजरे के पास जब उसका मालिक आया तो तोते का शरीर कांपने लगा और बेहोश होकर गिर पड़ा । तोते के मालिक ने समझा कि शायद तोते को कुछ बीमीरी हो गई है उसने तोते को पिंजरे से बाहर निकाला नीचे रखकर जैसे ही उसके ऊपर पानी वगैरह के छींटे मारने लगा तो इसी बीच तोता तुरंत उठा और उड़कर आकाश में चला गया । इस कहानी का सार है “युक्ति से मुक्ति” । अगर सही सही तरीके से भक्ति की जाए तो मुक्ति हो जाएगी ।
-स्वामी शिवानंद जी महाराज-
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