'शायरों की दुनियाँ '- इश्क़ तुम्हारा,वो गुफ़्तगू था .... - Kashi Patrika

'शायरों की दुनियाँ '- इश्क़ तुम्हारा,वो गुफ़्तगू था ....


इश्क़ तुम्हारा,वो  गुफ़्तगू था ....
गुफ्तगू जो एक सिलसिला था दिल को छूने का 


गुफ्तगू जो एक सिलसिला था दिल को छूने का 
तुम्हारे होठो से गिरते मोती चुनने का 
उदास करती है हर शाम, 
खाली रहती है हर सुबह,
गुफ्तगू जो एक सिलसिला था दिल को छू लेने का। 
इन बीते सालो में जैसे सदिया बीती हो 
बहुत बदला हूँ मैं,
शायद तुम मिलो तो चेहरा भी 
पहचान सकने में कुछ वक़्त लगे ,
मगर जो तुम बोलोगी,
शब्द तुम्हारे होंगे 
धड़कन मेरी सब गिनने लगेंगे। 
जो गुफ्तगू होती थी 
ज़िन्दगी बस मेरी उतनी थी। 
     

  • मैं उतना भी घुमक्क्ड मिज़ाज नहीं रखता, टिक कर रहना चाहता था तुम्हारे आशियाने में.
जो मिले नहीं तुम तो देखो मैं कैसा बदला, खानाबदोश सा फिरता हूँ अब तलाश में ,
जो कोई तुमसा हो।

-अदिति-

No comments:

Post a Comment