सप्ताहांत - Kashi Patrika

सप्ताहांत

हफ्तेभर की खबरों का लेखाजोखा॥

आम जन के चश्मे से देखे तो, पेट्रोल-डीजल के रोज बढ़ते दाम से हलकान जनता की आंखों पर धर्म-जाति की पट्टी बांधकर सियासत चमकाने की कोशिश में नीतिकार जुटे हैं। लेकिन “इधर कुआं-उधर खाई” की स्थिति में फंसा ‛लोक’ 2019 आने की बाट जोह रहा है और फिलहाल तमाशबीन बन राजनीतिक तमाशों का लुत्फ उठा रहा है। 
इन सबके बीच, सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक समुदाय को ऐतिहासिक राहत दी, तो मॉब लिचिंग पर सख्त हो राज्यों को चेतावनी दी। खबरों के मुताबिक बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आज 'अजेय बीजेपी' के नारे पर मुहर लगी, जिसके साथ पार्टी लोकसभा चुनाव 2019 में मैदान में उतरेगी।

किसके साथ बीजेपी!
“सबका साथ, सबका विकास” वादे के साथ 2014 में जीत का परचम लहराने वाली बीजेपी 2019 लोकसभा चुनाव से पहले अपने ही दांव में फंसती दिख रही है। एससी/एसटी एक्ट कानून में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट कर बीजेपी ने सवर्णों की नाराजगी मोल ले ली है। नतीजतन बीजेपी के वोट बैंक माने जाने वाले सवर्ण सड़कों पर हैं और सरकार के माथे पर चिंता की लकीर है। यहां बीजेपी के लिए राहत की बात यह है कि नाराजगी के बावजूद सवर्णों ने फिलहाल किसी और राजनीतिक दल के साथ जाने का फैसला नहीं किया है। हालांकि, सियासी गलियारों में यह चर्चा भी है कि एससी/एसटी को अपनी तरफ आकर्षित करने और उनकी सहानुभूति बटोरने के लिए बीजेपी ने ही ‛सवर्ण नाराजगी’ का कार्ड खेला है।
उधर, एससी-एसटी कानून के संशोधन को चुनौती देने वाली दायर याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और सरकार से छह हफ़्ते में जवाब मांगा है। कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि चूंकि यह संसद में पारित हो चुका है, लिहाजा इसे लागू करने पर रोक नहीं लगाई जा सकती।

पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम, इसलिए जिम्मेदार सरकार
पेट्रोल और डीजल के दाम में बेतहाशा बढ़ोत्तरी को लेकर कांग्रेस सहित विपक्ष जहां केंद्र सरकार को घेर रही है। वहीँ, आम जन इससे परेशान है और उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा, जबकि सरकार इसका ठीकरा पिछले कुछ महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के बढ़ते दाम के सिर पर फोड़ कर खुदको पाक-साफ बता रही है। लेकिन, अगर पेट्रोल-डीजल के दाम के अर्थशास्त्र का बारीकी से विश्लेषण करें, तो सरकार दरअसल बेगुनाह नहीं है। पिछले कुछ महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के बढ़े दाम का असर तो देश में पेट्रोल-डीजल की वर्तमान कीमत का पड़ा है, मगर यह पूरा सच नहीं है। अर्थशास्त्र के जानकारों की माने तो, जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली उस वक्त अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक बैरल कच्चे तेल की कीमत 101 डॉलर थी और उस समय दिल्ली में पेट्रोल 71 और डीजल 57 रुपये के भाव से बिक रहा था। आज कच्चे तेल का दाम 76 डॉलर है, लेकिन  महानगरों में पेट्रोल-डीजल की कीमत 90 के आसपास पहुंच चुका है। यानी अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल का दाम एक-चौथाई कम हुआ है, लेकिन पेट्रोल का दाम कोई 10 प्रतिशत और डीजल का दाम 20 प्रतिशत बढ़ गया है, ऐसा क्यों? क्योंकि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद संयोगवश अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में गिर कर सिर्फ 33 डॉलर पर पहुंच गया। अगर उस वक्त देश के पेट्रोल और डीजल के दाम को उसी हिसाब से घटने दिया जाता, तो पेट्रोल 24 और डीजल 19 रुपये लीटर हो सकता था। उस समय सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दाम में मामूली सी कटौती कर अपना टैक्स बढ़ाकर सरकारी खजाना बढ़ाया। राज्य सरकारों ने भी वैट बढ़ा दिया। अब कच्चे तेल के दाम बढ़ने शुरू हुए, तब सरकार ने उसका बोझ सीधे उपभोक्ता पर डाल दिया है।
जानकारों की मानें तो, पेट्रोल और डीजल पर अतिरिक्त टैक्स और सरकार के अपने पेट्रोल-डीजल खर्चे में हुई बचत से कोई छह लाख करोड़ रुपया अतिरिक्त कमाया। इस खजाने का सरकार ने क्या उपयोग किया वह तो वही जाने, लेकिन अब हर रोज पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है।

राम या शिव: धर्म सहारे सियासत
बीजेपी के हिंदुत्व को कठघरे में खड़ा करने वाले कांग्रेसी नेता शशि थरूर आजकल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की कैलाश मानसरोवर यात्रा पर भले मौन हैं, लेकिन उनकी ‛शिव भक्ति’ को कांग्रेस बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित कर रही है। ऐसा नहीं है तो, कैलाश यात्रा को आस्था का विषय बताने वाली कांग्रेस की ओर से सोशल मीडिया पर दर्शन के दौरान राहुल गांधी 463 मिनटों में 34.31 किलोमीटर पैदल चले पोस्ट क्यों किया गया! हालांकि, इसे लेकर बीजेपी-कांग्रेस में जमकर जुबानी तीर बरसाए गए। उधर, विधानसभा चुनाव के मद्देनजर वसुंधरा राजे मंदिरों में मत्था टेक रही हैं। ऐसा लगता है देश के दो बड़े राजनीतिक दल यही साबित करने में जुटे हैं कि कौन ज्यादा धार्मिक है?

377 पर जीत: मुश्किलें अभी और भी
देश की सर्वोच्च न्यायालय ने दंड संहिता की धारा 377 को मनमाना और अतार्किक बताते हुए भले ही समलैंगिक समुदाय को राहत दे दी। पर अदालती फैसले से इतर अभी एलजीबीटी समुदाय को कई मुश्किलों को पार करना बाकी है। समाज और धर्म की कसौटी पर फिलहाल इसे मान्यता मिलना मुश्किल लगता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही आई धार्मिक प्रतिक्रिया पर गौर करें, तो धर्म इन संबंधों को अप्राकृतिक व्यभिचार या पाप समझते हैं। मीडिया ख़बरों के मुताबिक संघ के प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने एक बयान में कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरह हम भी समलैंगिकता को अपराध नहीं मानते हैं, पर ये संबंध प्राकृतिक नहीं होते, इसलिए हम इस तरह के संबंध का समर्थन नहीं करते हैं।’ कुमार ने दावा किया कि भारतीय समाज पारंपरिक तौर पर ऐसे संबंधों को मान्यता नहीं देता है। मानव आमतौर पर अनुभवों से सीखता है, इसलिए इस विषय पर सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक स्तर पर चर्चा करने और इसका समाधान करने की जरूरत है.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और अधिवक्ता कमाल फारूक़ी ने कहा, ‘आपराधीकरण गलत था, कोई अपने बेडरूम में क्या करे इसमें किसी का कोई दखल नहीं होना चाहिए। लेकिन अगर ये फैसला समाज को नष्ट कर देता है, यदि यह मेरे देश की संस्कृति को नष्ट कर देता है, तो बोर्ड निश्चित रूप से सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि देश के सभी नागरिकों के लिए भूमिका निभाएगा।’ कमाल ने आगे कहा, ‘हम जल्द ही इसके जवाब के साथ आएंगे, हम भी अदालत जा सकते हैं। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि समलैंगिकता इस्लाम के खिलाफ है और इस पर कुरान पर एक संपूर्ण अध्याय है। यदि यह आदर्श बन जाता है, तो 100 साल बाद मानवता मिट जाएगी और यह प्रकृति के नियम के खिलाफ है।’

बीजेपी के सिरदर्द हार्दिक
आरक्षण व किसानों की कर्ज माफी की मांग को लेकर 15 दिन से अनशन कर रहे पाटीदार नेता हार्दिक पटेल शुक्रवार को तबीयत बिगड़ने को लेकर सरकारी सोला सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन देर रात्रि उनके समर्थक उन्हें स्वामीनारायण संप्रदाय की हॉस्पीटल में ले गए। वरिष्ठ नेता शरद यादव व सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश शनिवार दोपहर हार्दिक से मिलने पहुंचे, जहां शरद यादव ने हार्दिक को पानी पिलाया।
साल 2015 की विसनगर की विशाल रैली से लेकर अहमदाबाद में चल रहे अनिश्चितकालीन उपवास तक, हार्दिक पटेल ने खुद को गुजरात की राजनीति में एक अहम चेहरे के रूप में स्थापित कर लिया और बीजेपी के लिए सिर दर्द बनते गए। विधानसभा चुनावों के दौरान भी हार्दिक की छवि का असर भी देखने को मिला। हालांकि सत्ताधारी पार्टी उनकी लोकप्रियता की बात को खारिज करती है और चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार को उसका परिणाम बताती रही है। तीन साल के सार्वजनिक जीवन में राजद्रोह के आरोप में हार्दिक को नौ महीने जेल में रहना पड़ा, निर्वासन का सामना करना पड़ा और छह महीने पड़ोसी राज्य में गुजारना पड़ा। गुजरात के विभिन्न थानों में उन पर 56 केस दर्ज हैं। उनके समर्थक ये मानते हैं कि हार्दिक के प्रभाव की वजह से ही बीजेपी को अपना मुख्यमंत्री बदलना पड़ा था। कुल मिलाकर, हार्दिक के अनशन को विभिन्न दलों का समर्थन मिलता रहा है और केंद्र सरकार की मुसीबत बढ़ रही है।

मॉब लिंचिंग: राज्यों की सुस्ती पर कोर्ट नाराज
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस बात पर नाराजगी जताई की 29 राज्यों तथा सात केंद्र शासित प्रदेशों में से केवल 11 ने भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या और गोरक्षा के नाम पर हिंसा जैसे मामलों में कदम उठाने के शीर्ष अदालत के आदेश के अनुपालन के बारे में रिपोर्ट पेश की है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम खानविलकर तथा जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने ऐसा नहीं करने वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को रिपोर्ट पेश करने का अंतिम अवसर देते हुए चेतावनी दी कि यदि उन्होंने एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट पेश नहीं की, तो उनके गृह सचिवों को न्यायालय में व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होना पड़ेगा। इस मामले की सुनवाई के दौरान, केंद्र ने पीठ को सूचित किया कि गोरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा के मुद्द पर न्यायालय के फैसले के बाद भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या करने के बारे में कानून बनाने पर विचार के लिए मंत्रियों के समूह का गठन किया गया है। न्यायालय कांग्रेस के नेता तहसीन पूनावाला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में राजस्थान में 20 जुलाई को डेयरी किसान अकबर खान की कथित तौर पर पीट-पीटकर हुई हत्या के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले के कथित उल्लंघन का हवाला देते हुए प्रदेश के पुलिस प्रमुख, मुख्य सचिव समेत अन्य अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई करने की मांग की गई थी।

अंततः निदा फाजली का शेर-
“कोई हिंदू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है
सब ने इंसान न बनने की कसम खाई है।”
■ सोनी सिंह

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