रिश्तों की पाठशाला: राधा बिन श्याम अधूरे, क्यों? - Kashi Patrika

रिश्तों की पाठशाला: राधा बिन श्याम अधूरे, क्यों?

सभी रिश्ते प्रेम-स्नेह की मजबूत डोर से बंधे है और कई बार त्याग इसे और मजबूत कर देता है। आध्यात्मिक प्रेम की मिशाल राधा-कृष्ण एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं, जबकि श्रीकृष्ण ने विवाह रुक्मणी से किया। फिर भी जीवन पर्यन्त उनके हृदय में राधा ही बसी रहीं, आखिर क्यों? एक बार रुक्मणी ने इसकी परीक्षा ली...


सोलह कलाओं से युक्त श्रीकृष्ण  भगवान विष्णु के पूर्णावतार माने जाते हैं। इस रूप में वे जहां धर्म और न्याय का सूचक है, वहीं इसमें पशु-पक्षी, वृक्ष, गोपी-राधा-बाल सखा, बांसुरी, नदी सभी के प्रति अपार प्रेम समाहित है। राधा-कृष्ण के आधात्मिक प्रेम का उदाहरण जग में कहीँ और नहीं मिलता। राधा और कृष्ण के प्रेम का वह भाव, जो बताता है कि स्वच्छ मन और समर्पण भाव से किया गया प्रेम अमर हो जाता है।
श्रीकृष्णजी की हर सांस में राधा बसी हुई थीं। कुछ भी खाते-पीते भी वे राधे-राधे बोला करते थे। एक दिन रुक्मणी ने भोजन के बाद किशनजी को दूध पीने के लिए दिया। दूध इतना ज्यादा गरम था कि श्रीकृष्ण के हृदय तक गरम लगा। इसी दौरान उनके श्रीमुख से निकल पड़ा- हे राधे।
रुक्मणी ने यह शब्द सुन लिए और वे बोलीं-प्रभु, ऐसा क्या है राधाजी में जो आपकी हर सांस के साथ उनका ही नाम निकलता है। मैं भी तो आपसे असीम प्रेम करती हूं। फिर भी आप मुझे नहीं पुकारते, क्यों?
इस पर किशनजी बोले-देवी, आप राधा से मिल चुकी हैं? इतना कहते हुए किशनजी मंद-मंद मुस्कुराने लगे।
अगले ही दिन रुक्मणी से रहा न गया और वे राधा से मिलने उनके महल तक पहुंच गई। राधाजी के कक्ष के बाहर अत्यंत ही खूबसूरत स्त्री को देखा। उसके मुख पर तेज था। रुक्मणी उस स्त्री के पास गई और चरण छूने लगी। तभी वह बोलीं- कौन हैं आप। तब रुक्मणी ने अपना परिचय देते हुए आने का कारण बताया। वह वो बोलीं मैं तो राधाजी की दासी हूं। राधाजी को आपको सात द्वार के बाद मिलेंगी। रुक्मणी ने एक-एक करके सात द्वार पार किए। इस दौरान हर द्वार पर एक से एक सुंदर और तेजवान दासी को देख सोच रही थी कि यदि उनकी दासियां इतनी रूपवान हैं तो राधारानी कितनी रूपवान होंगी।
जब रुक्मणी राधाजी के कक्ष में प्रवेश करती हैं तो वे राधाजी के तेजस्वी स्वरूप, मुख पर सूर्य से तेज चमक देख उनके चरणों में गिर गई। लेकिन, इस दौरान राधाजी के पूरे शरीर पर छाले देख वे हैरान रह गई।
रुक्मणी ने पूछ ही लिया कि देवी आपके शरीर पर यह छाले क्यों हो गए? तब राधाजी बोलीं- देवीं, कल आपने कृष्णजी को जो दूध दिया था, वह काफी गर्म था। जिससे उनके हृदय पर छाले पड़ गए। और, उनके हृदय में तो सदैव मेरा वास है...।
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