प्रेम के सागर में डूबो! - Kashi Patrika

प्रेम के सागर में डूबो!

इतनी बार तुमने प्रेम किया और इतनी बार तुम लुटे हो कि अब डरने लगे हो, अब घबड़ाने लगे हो। मैं तुमसे कहता हूं, लेकिन तुम गलत जगह लुटे...

लुटने की भी कला होती है। लुटने के भी ढंग होते हैं, शैली होती है। लुटने का भी शास्त्र होता है। तुम गलत जगह लुटे। तुम गलत लुटेरों से लुटे। तुम देखते हो, हिंदू बड़ी अद्‍भुत कौम है। उसने परमात्मा को एक नाम दिया हरि। हरि का अर्थ होता है- लुटेरा, जो लूट ले, जो हर ले, छीन ले, चुरा ले। दुनिया में किसी जाति ने ऐसा प्यारा नाम परमात्मा को नहीं दिया है। जो हरण कर ले। लुटना हो, तो परमात्मा के हाथों लुटो। छोटी-छोटी बातों में लुट गए! चुल्लू-चुल्लू पानी में डूबकर मरने की कोशिश की, मरे भी नहीं, पानी भी खराब हुआ, कीचड़ भी मच गई, अब बैठे हो। अब मैं तुमसे कहता हूं, डूबो सागर में। तुम कहते हो, हमें डूबने की बात ही नहीं जंचती, क्योंकि हम डूबे कई दफा। डूबना तो होता ही नहीं और कीचड़ से सन जाते हैं। वैसे ही अच्छे थे। चुल्लू भर पानी में डूबोगे तो कीचड़ लगेगी ही। परमात्मा के प्रेम रूपी सागर है, उसमें डूबो।
■ ओशो

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