“अव्वल अलह नूर उपाया, कुदरत के सब बंदे।
एक नूर ते सब जग उपज्या कौन भले को मन्दे॥”
इस बात में भले जितनी सच्चाई हो, लेकिन मर्म कौन समझता है। धर्म-जाति के नाम पर नित बंट रहे देश में अब भी मानवता सांस लेती है और समाज का एक हिस्सा एकता में आस्था रखता है। ऐसी ही कौमी एकता का प्रतीक राजस्थान स्थित एक दरगाह है, जहां अल्लाह के बंदे मनाते हैं नन्दलाल का जन्मोत्सव...
जन्माष्टमी विशेष॥
राजस्थान के शेखावाटी अंचल में एक दरगाह ऐसी है, जहां भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के मौके पर तीन दिन का मेला लगता है। झुंझुनूं जिले के नरहड कस्बे में स्थित पवित्र हाजीब शक्करबार शाह की दरगाह आज भी कौमी एकता की जीवन्त मिसाल बनी हुई है, जहां सदियों से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर विशाल मेला लगता है। इसमें देश के विभिन्न हिस्सों से हिन्दुओं के साथ मुसलमान भी श्रद्धा से शरीक होते हैं। जन्माष्टमी पर हर वर्ष दरगाह परिसर में भरने वाले तीन दिवसीय मेले में पड़ोसी हरियाणा, पंजाब, गुजरात, मध्यप्रदेश, दिल्ली, आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र तथा राजस्थान के लाखों जायरीन शरीक होते हैं। इस मेले में बड़ी संख्या में हिन्दू धर्मावलम्बी भी शिरकत कर अकीदत के फूल भेंट करते हैं। जायरीन यहां हजरत हाजिब की मजार पर चादर, नारियल तथा मिठाइयां चढ़ाते हैं।
हाजीब शक्करबार शाह की दरगाह में जन्माष्टमी की रात होने वाला रतजगा सूफी संत हजरत शकरबार शाह की इस दरगाह को देशभर में कौमी एकता की अनूठी मिसाल का अदभुत आस्था का केन्द्र बनाता है। यहां हर धर्म मजहब के श्रद्धालु हर प्रकार के भेदभाव को भुला कर बाबा की बारगाह में सजदा करते हैं।
वर्षों पुरानी परंपरा
दरगाह के खादिम एवं इंतजामिया कमेटी करीब 700 वर्ष से चली आ रही साम्प्रदायिक सदभाव को प्रदर्शित करने वाली इस अनूठी परम्परा को सालाना उर्स की माफिक आज भी पूरी शिद्दत से पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते चले आ रहे हैं। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की छठ से शुरू होने वाले इस तीन दिवसीय धार्मिक आयोजन में दूरदराज से आने वाले हिन्दू धर्मावलमबी नव विवाहितों के गठजोड़े की जात एवं बच्चों के जडूले उतारते हैं।
मंदिर की तरह ही रात्रि जागरण
जन्माष्टमी पर जिस तरह मंदिरों में रात्रि जागरण होते हैं ठीक उसी तरह अष्टमी को पूरी रात दरगाह परिसर में प्रख्यात कलाकार श्रीकृष्ण चरित्र नृत्य नाटिका की प्रस्तुति देकर रतजगा की परम्परा को जीवंत बनाए हुए हैं। नरहड दरगाह में अष्टमी एवं नवमी को मेला परवान पर रहता है। साथ ही कव्वाली का भी आयोजन होता है।
यहां गुम्बद से कभी बरसता था शक्कर
किवदन्ती है कि पहले यहां दरगाह की गुम्बद से शक्कर बरसती थी, इसी कारण यह दरगाह शक्कर बार बाबा के नाम से जानी जाती है। शक्कर बार शाह अजमेर के सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के समकालीन सूफी थे तथा उनकी ही तरह सिद्ध पुरूष थे। यही वजह है कि हरियाणा और राजस्थान के शेखावाटी अंचल में उनकी लोक देवता के रूप में पूजा की जाती है।
गाय और भैंस के बछड़ा जनने पर उसके दूध से जमे दही का प्रसाद पहले दरगाह में चढ़ाया जाता है तभी पशु का दूध घर में इस्तेमाल होता है। यह दरगराह बागड के धणी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दरगाह को लेकर कई तरह की किवदंतियां हैं और यहां आने वाले सभी धर्म के लोग अपनी अपनी पद्धति से बाबा दरगाह में हाजरी लगाकर दुआ मांगते हैं।
एक नूर ते सब जग उपज्या कौन भले को मन्दे॥”
इस बात में भले जितनी सच्चाई हो, लेकिन मर्म कौन समझता है। धर्म-जाति के नाम पर नित बंट रहे देश में अब भी मानवता सांस लेती है और समाज का एक हिस्सा एकता में आस्था रखता है। ऐसी ही कौमी एकता का प्रतीक राजस्थान स्थित एक दरगाह है, जहां अल्लाह के बंदे मनाते हैं नन्दलाल का जन्मोत्सव...
जन्माष्टमी विशेष॥
राजस्थान के शेखावाटी अंचल में एक दरगाह ऐसी है, जहां भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के मौके पर तीन दिन का मेला लगता है। झुंझुनूं जिले के नरहड कस्बे में स्थित पवित्र हाजीब शक्करबार शाह की दरगाह आज भी कौमी एकता की जीवन्त मिसाल बनी हुई है, जहां सदियों से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर विशाल मेला लगता है। इसमें देश के विभिन्न हिस्सों से हिन्दुओं के साथ मुसलमान भी श्रद्धा से शरीक होते हैं। जन्माष्टमी पर हर वर्ष दरगाह परिसर में भरने वाले तीन दिवसीय मेले में पड़ोसी हरियाणा, पंजाब, गुजरात, मध्यप्रदेश, दिल्ली, आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र तथा राजस्थान के लाखों जायरीन शरीक होते हैं। इस मेले में बड़ी संख्या में हिन्दू धर्मावलम्बी भी शिरकत कर अकीदत के फूल भेंट करते हैं। जायरीन यहां हजरत हाजिब की मजार पर चादर, नारियल तथा मिठाइयां चढ़ाते हैं।
हाजीब शक्करबार शाह की दरगाह में जन्माष्टमी की रात होने वाला रतजगा सूफी संत हजरत शकरबार शाह की इस दरगाह को देशभर में कौमी एकता की अनूठी मिसाल का अदभुत आस्था का केन्द्र बनाता है। यहां हर धर्म मजहब के श्रद्धालु हर प्रकार के भेदभाव को भुला कर बाबा की बारगाह में सजदा करते हैं।
वर्षों पुरानी परंपरा
दरगाह के खादिम एवं इंतजामिया कमेटी करीब 700 वर्ष से चली आ रही साम्प्रदायिक सदभाव को प्रदर्शित करने वाली इस अनूठी परम्परा को सालाना उर्स की माफिक आज भी पूरी शिद्दत से पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते चले आ रहे हैं। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की छठ से शुरू होने वाले इस तीन दिवसीय धार्मिक आयोजन में दूरदराज से आने वाले हिन्दू धर्मावलमबी नव विवाहितों के गठजोड़े की जात एवं बच्चों के जडूले उतारते हैं।
मंदिर की तरह ही रात्रि जागरण
जन्माष्टमी पर जिस तरह मंदिरों में रात्रि जागरण होते हैं ठीक उसी तरह अष्टमी को पूरी रात दरगाह परिसर में प्रख्यात कलाकार श्रीकृष्ण चरित्र नृत्य नाटिका की प्रस्तुति देकर रतजगा की परम्परा को जीवंत बनाए हुए हैं। नरहड दरगाह में अष्टमी एवं नवमी को मेला परवान पर रहता है। साथ ही कव्वाली का भी आयोजन होता है।
यहां गुम्बद से कभी बरसता था शक्कर
किवदन्ती है कि पहले यहां दरगाह की गुम्बद से शक्कर बरसती थी, इसी कारण यह दरगाह शक्कर बार बाबा के नाम से जानी जाती है। शक्कर बार शाह अजमेर के सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के समकालीन सूफी थे तथा उनकी ही तरह सिद्ध पुरूष थे। यही वजह है कि हरियाणा और राजस्थान के शेखावाटी अंचल में उनकी लोक देवता के रूप में पूजा की जाती है।
गाय और भैंस के बछड़ा जनने पर उसके दूध से जमे दही का प्रसाद पहले दरगाह में चढ़ाया जाता है तभी पशु का दूध घर में इस्तेमाल होता है। यह दरगराह बागड के धणी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दरगाह को लेकर कई तरह की किवदंतियां हैं और यहां आने वाले सभी धर्म के लोग अपनी अपनी पद्धति से बाबा दरगाह में हाजरी लगाकर दुआ मांगते हैं।
■■
No comments:
Post a Comment