18 दिन तक चले महाभारत युद्ध के बाद द्रोपदी शारीरिक और मानसिक रूप से काफी पीड़ा में थी। युद्ध से पूर्व प्रतिशोध की ज्वाला में जल रही द्रौपदी युद्ध के उपरांत पश्चाताप की आग में तप रही थी। वह अपने कक्ष में बैठी थी, तभी कृष्ण कक्ष में प्रवेश करते हैं- महारानी द्रौपदी की जय हो।
द्रौपदी कृष्ण को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट जाती है और रोने लगती है। थोड़ी देर बाद श्रीकृष्ण उसे खुद से अलग करके समीप के पलंग पर बिठा देते हैं।
द्रोपदी:- यह क्या हो गया सखा ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था!
कृष्ण:-नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली। वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती, हमारे कर्मों को परिणामों में बदल देती है। तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और तुम सफल हुई द्रौपदी! तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ। सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं सारे कौरव समाप्त हो गए, तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए!
द्रोपदी:-सखा तुम मेरे घावों को सहलाने आए हो या उन पर नमक छिड़कने के लिए!
कृष्ण:-नहीं द्रौपदी मैं तो तुम्हें वास्तविकता से अवगत कराने के लिए आया हूं। हमारे कर्मों के परिणाम को हम दूर तक नहीं देख पाते हैं और जब वे समक्ष होते हैं तो हमारे हाथ में कुछ नहीं रहता।
द्रोपदी:-तो क्या इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदाई हूं कृष्ण?
कृष्ण:-नहीं द्रौपदी तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो, लेकिन तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी भी दूरदर्शिता रखती तो स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती।
द्रोपदी:- मैं क्या कर सकती थी कृष्ण?
कृष्ण:- जब तुम्हारा स्वयंबर हुआ, तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करती और उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का एक अवसर देती तो शायद परिणाम कुछ और होते! इसके बाद जब कुंती ने तुम्हें पांच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया, तब तुम उसे स्वीकार नहीं करती तो भी परिणाम कुछ और होते।
और उसके बाद तुमने अपने महल में दुर्योधन को अपमानित किया वह नहीं करती, तो तुम्हारा चीर हरण नहीं होता तब भी शायद परिस्थितियां कुछ और होती। हमारे शब्द भी हमारे कर्म होते हैं। द्रोपदी और हमें अपने हर शब्द को बोलने से पहले तोलना बहुत जरूरी होता है, अन्यथा उसके दुष्परिणाम सिर्फ स्वयं को ही नहीं अपने पूरे परिवेश को दुखी करते रहते हैं।
संसार में केवल मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जिसका "जहर" उसके "दांतों " में नही, "शब्दों" में है। इसलिए शब्दों का प्रयोग सोच-समझकर करिए। ऐसे शब्द का प्रयोग करिए, जिससे किसी की भावना को ठेस न पहुंचे।
रूप रंग समरूपता, कोकिल काक जनाय।
जब आवे मधुमास रुत,वाणी भेद बताय।।
ऊं तत्सत...
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