चौबीस घंटों में तुम जो भी करते हो, उसे प्रेम से करो और तुम्हारे दिल की पीड़ा मिट जाएगी। तुम जितने प्रेमपूर्ण होओगे, लोग तुम्हें प्रेम करेंगे। यह स्वाभाविक नियम है। तुम्हें वही मिलता है, जो तुम देते हो...
प्रेम सभी मांग रहे हैं, देने वाला कोई नहीं। हर व्यक्ति बच्चा रहा गया है और उसके भीतर प्रेम पाने की आकांक्षा पल रही है। सभी मांग रहे हैं,”हमें प्रेम दो”, लेकिन देने वाला कोई भी नहीं, जबकि प्रेम देना बहुत सुंदर अनुभव है, क्योंकि देने में तुम सम्राट हो जाते हो। लेना बहुत तुच्छ अनुभव है, क्योंकि तुम भिखारी हो जाते हो। जहां तक प्रेम का प्रश्न है, भिखारी मत बनो, सम्राट रहो क्योंकि तुम्हारे भीतर यह गुणवत्ता असीम है। तुम जितना देना चाहो, दिए चले जा सकते हो। तुम यह चिंता मत करना कि यह चुक जाएगा कि एक दिन तुम पाओगे कि “हे प्रभु, मेरे पास तो प्रेम देने के लिए बचा ही नहीं।” प्रेम मात्रा नहीं, गुणवत्ता है, ऐसी गुणवत्ता...जो देने से बढ़ती है और पकड़े रहने से मर जाती है। अत: इसे पूरी तरह लुटा दो। चिंता मत करो कि मैं उसे प्रेम दूंगा, जिसमें अमुक गुण होंगे। तुम्हें पता ही नहीं कि तुम्हारे पास कितना प्रेम है। तुम भरे हुए बादल हो। बादल यह चिंता नहीं करता कि कहां बरसे। चट्टान हो कि उपवन याकि सागर कोई परवाह नहीं। यह स्वयं को हल्का करना चाहता है और वह निर्भारता ही विश्रांति है। तो पहला रहस्य है: इसे मांगें मत, प्रतीक्षा मत करें कि कोई आएगा तो हम देंगे। बस दे दें।
अपना प्रेम किसी को भी दें। किसी अजनबी को ही सही। प्रश्न यह नहीं है कि तुम कुछ बहुत कीमती दे रहे हो, कुछ भी, थोड़ी सी सहायता, और वह काफी है।
चौबीस घंटों में तुम जो भी करते हो, उसे प्रेम से करो और तुम्हारे दिल की पीड़ा मिट जाएगी। और क्योंकि तुम जितने प्रेमपूर्ण होओगे, लोग तुम्हें प्रेम करेंगे। यह स्वाभाविक नियम है। तुम्हें वही मिलता है, जो तुम देते हो। वास्तव में तुम उससे अधिक पाते हो, जो तुम देते हो। देना सीखो और तुम पाओगे कि लोग तुम्हारे प्रति कितने प्रेमपूर्ण हैं, वही लोग जिन्होंने तुम्हारे प्रति कभी ध्यान नहीं दिया। तुम्हारी समस्या यही है कि तुम्हारा दिल प्रेम से भरा है लेकिन तुम कंजूस रहे हो; वही प्रेम तुम्हारे दिल पर बोझ हो गया है। दिल को खुला रखने की बजाए तुम इसे पकड़े रहे तो कभी-कभार, किसी प्रेम की घड़ी में यह पीड़ा तिरोहित होने लगती है।
प्रेम बांटो। बस बांटो, और तुम अपने भीतर असीम शांति व मौन का अनुभव करोगे। यही तुम्हारा ध्यान बन जाएगा। ध्यान में उतरने की विभिन्न दिशाएं हैं; और शायद तुम्हारी दिशा यही है।
■ ओशो
प्रेम सभी मांग रहे हैं, देने वाला कोई नहीं। हर व्यक्ति बच्चा रहा गया है और उसके भीतर प्रेम पाने की आकांक्षा पल रही है। सभी मांग रहे हैं,”हमें प्रेम दो”, लेकिन देने वाला कोई भी नहीं, जबकि प्रेम देना बहुत सुंदर अनुभव है, क्योंकि देने में तुम सम्राट हो जाते हो। लेना बहुत तुच्छ अनुभव है, क्योंकि तुम भिखारी हो जाते हो। जहां तक प्रेम का प्रश्न है, भिखारी मत बनो, सम्राट रहो क्योंकि तुम्हारे भीतर यह गुणवत्ता असीम है। तुम जितना देना चाहो, दिए चले जा सकते हो। तुम यह चिंता मत करना कि यह चुक जाएगा कि एक दिन तुम पाओगे कि “हे प्रभु, मेरे पास तो प्रेम देने के लिए बचा ही नहीं।” प्रेम मात्रा नहीं, गुणवत्ता है, ऐसी गुणवत्ता...जो देने से बढ़ती है और पकड़े रहने से मर जाती है। अत: इसे पूरी तरह लुटा दो। चिंता मत करो कि मैं उसे प्रेम दूंगा, जिसमें अमुक गुण होंगे। तुम्हें पता ही नहीं कि तुम्हारे पास कितना प्रेम है। तुम भरे हुए बादल हो। बादल यह चिंता नहीं करता कि कहां बरसे। चट्टान हो कि उपवन याकि सागर कोई परवाह नहीं। यह स्वयं को हल्का करना चाहता है और वह निर्भारता ही विश्रांति है। तो पहला रहस्य है: इसे मांगें मत, प्रतीक्षा मत करें कि कोई आएगा तो हम देंगे। बस दे दें।
अपना प्रेम किसी को भी दें। किसी अजनबी को ही सही। प्रश्न यह नहीं है कि तुम कुछ बहुत कीमती दे रहे हो, कुछ भी, थोड़ी सी सहायता, और वह काफी है।
चौबीस घंटों में तुम जो भी करते हो, उसे प्रेम से करो और तुम्हारे दिल की पीड़ा मिट जाएगी। और क्योंकि तुम जितने प्रेमपूर्ण होओगे, लोग तुम्हें प्रेम करेंगे। यह स्वाभाविक नियम है। तुम्हें वही मिलता है, जो तुम देते हो। वास्तव में तुम उससे अधिक पाते हो, जो तुम देते हो। देना सीखो और तुम पाओगे कि लोग तुम्हारे प्रति कितने प्रेमपूर्ण हैं, वही लोग जिन्होंने तुम्हारे प्रति कभी ध्यान नहीं दिया। तुम्हारी समस्या यही है कि तुम्हारा दिल प्रेम से भरा है लेकिन तुम कंजूस रहे हो; वही प्रेम तुम्हारे दिल पर बोझ हो गया है। दिल को खुला रखने की बजाए तुम इसे पकड़े रहे तो कभी-कभार, किसी प्रेम की घड़ी में यह पीड़ा तिरोहित होने लगती है।
प्रेम बांटो। बस बांटो, और तुम अपने भीतर असीम शांति व मौन का अनुभव करोगे। यही तुम्हारा ध्यान बन जाएगा। ध्यान में उतरने की विभिन्न दिशाएं हैं; और शायद तुम्हारी दिशा यही है।
■ ओशो
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