जिसे हम जीवन समझते हैं, वह जीवन नहीं, केवल एक सपना है। नींद टूटने पर ज्ञात होता है कि हाथ में कुछ भी नहीं है- जो था वह था नहीं, बस! केवल दिखता था। पर, इस स्वप्न-जीवन से सत्य-जीवन में जागा जा सकता है। निद्रा छोड़ी जा सकती है...
जीवन- जिसे हम जीवन समझते हैं, वह क्या है? रात्रि कोई पूछता था। मैंने एक कहानी कही :- एक विश्रामालय में दो व्यक्ति आराम-कुर्सियों पर बैठे हुए थे। एक युवा था, एक वृद्ध था। जो वृद्ध था वह आंखें बंद किए बैठा था, पर बीच-बीच में मुस्करा उठता था। और कभी-कभी हाथ से और चेहरे से ऐसे इशारे करता था, जैसे कुछ दूर हटा रहा हो। युवक से बिना पूछे न रहा गया। वृद्ध ने एक बार आंखें खोली, तो उसने पूछ ही लिया, 'इस अत्यंत कुरूप विश्रामगृह में ऐसा क्या है, जो आप में मुस्कराहट ला देता है?' वृद्ध बोला, 'मैं अपने से कुछ कहानियां कह रहा हूं, उनमें ही हंसी आ जाती है।' उस युवक ने पूछा, 'और बार-बार हाथ से हटाते क्या हैं?' वृद्ध हंसने लगा और बोला, 'उन कहानियों को जिन्हें बहुत बार सुन चुका हूं।' युवक ने कहा, 'आप भी क्या कहानियों से मन समझा रहे हैं।' उत्तर में वृद्ध ने कहा था, 'बेटे, एक दिन समझोगे कि पूरा ही जीवन कहानियों से अपने को समझा लेने का नाम है।'
निश्चित ही जीवन जैसा मिलता है, वह कहानी ही है। और कहानियों से अपने को समझा लेने का ही नाम जीवन है। जिसे हम जीवन समझते हैं, वह जीवन नहीं, केवल एक सपना है। नींद टूटने पर ज्ञात होता है कि हाथ में कुछ भी नहीं है- जो था, वह था नहीं, बस, केवल दिखता था। पर, इस स्वप्न-जीवन से सत्य-जीवन में जागा जा सकता है। निद्रा छोड़ी जा सकती है। जो सो रहा है, वह जाग भी सकता है। उसके सो सकने की संभावना ही, उसके जागने की भी संभावना है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)
जीवन- जिसे हम जीवन समझते हैं, वह क्या है? रात्रि कोई पूछता था। मैंने एक कहानी कही :- एक विश्रामालय में दो व्यक्ति आराम-कुर्सियों पर बैठे हुए थे। एक युवा था, एक वृद्ध था। जो वृद्ध था वह आंखें बंद किए बैठा था, पर बीच-बीच में मुस्करा उठता था। और कभी-कभी हाथ से और चेहरे से ऐसे इशारे करता था, जैसे कुछ दूर हटा रहा हो। युवक से बिना पूछे न रहा गया। वृद्ध ने एक बार आंखें खोली, तो उसने पूछ ही लिया, 'इस अत्यंत कुरूप विश्रामगृह में ऐसा क्या है, जो आप में मुस्कराहट ला देता है?' वृद्ध बोला, 'मैं अपने से कुछ कहानियां कह रहा हूं, उनमें ही हंसी आ जाती है।' उस युवक ने पूछा, 'और बार-बार हाथ से हटाते क्या हैं?' वृद्ध हंसने लगा और बोला, 'उन कहानियों को जिन्हें बहुत बार सुन चुका हूं।' युवक ने कहा, 'आप भी क्या कहानियों से मन समझा रहे हैं।' उत्तर में वृद्ध ने कहा था, 'बेटे, एक दिन समझोगे कि पूरा ही जीवन कहानियों से अपने को समझा लेने का नाम है।'
निश्चित ही जीवन जैसा मिलता है, वह कहानी ही है। और कहानियों से अपने को समझा लेने का ही नाम जीवन है। जिसे हम जीवन समझते हैं, वह जीवन नहीं, केवल एक सपना है। नींद टूटने पर ज्ञात होता है कि हाथ में कुछ भी नहीं है- जो था, वह था नहीं, बस, केवल दिखता था। पर, इस स्वप्न-जीवन से सत्य-जीवन में जागा जा सकता है। निद्रा छोड़ी जा सकती है। जो सो रहा है, वह जाग भी सकता है। उसके सो सकने की संभावना ही, उसके जागने की भी संभावना है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)
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