काशी सत्संग: मन ही ईश्वर - Kashi Patrika

काशी सत्संग: मन ही ईश्वर


एक बार भगवान दुविधा में पड़ गए! कोई भी मनुष्य जब मुसीबत में पड़ता, तो भगवान के पास भागा-भागा आता और उन्हें अपनी परेशानियां बताते हुए उनसे कुछ न कुछ मांगने लगता। इसके निराकरण के लिए उन्होंने देवताओं की बैठक बुलाई और उनके सामने यह बात रखी।
प्रभु के विचारों का आदर करते हुए देवताओं ने अपने-अपने विचार प्रकट किए। गणेश जी बोले, आप हिमालय पर्वत की चोटी पर चले जाएं। भगवान ने कहा, यह स्थान तो मनुष्य की पहुंच में है। उसे वहां पहुंचने में अधिक समय नहीं लगेगा। इंद्रदेव ने सलाह दी कि वह किसी महासागर में चले जाएं। वरुण देव बोले, आप अंतरिक्ष में चले जाइए।
भगवान ने कहा, एक दिन मनुष्य वहां भी अवश्य पहुंच जाएगा। भगवान निराश होने लगे थे। वह  मन  ही मन सोचने लगे, “क्या मेरे लिए कोई भी ऐसा गुप्त स्थान नहीं हैं, जहां मैं शांतिपूर्वक रह सकूं। अंत में सूर्य देव बोले, प्रभु! आप ऐसा करें कि मनुष्य के हृदय में बैठ जाएं! मनुष्य अनेक स्थान पर आपको ढूंढने में सदा उलझा रहेगा, पर वह यहां आपको कदापि तलाश न करेगा।
ईश्वर को सूर्य देव की बात पसंद आ गई। उन्होंने ऐसा ही किया और वह मनुष्य के हृदय में जाकर बैठ गए। उस दिन से मनुष्य अपना दुख व्यक्त करने के लिए ईश्वर को मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा, मठ, ऊपर, नीचे, आकाश, पाताल में ढूंढ रहा है, पर वे मिल नहीं रहे हैं। किंतु, मनुष्य कभी भी अपने भीतर- 'हृदय रूपी मन्दिर' में बैठे हुए ईश्वर को नहीं देख पाता।
ऊं तत्सत...

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