जो पण्डित मात्र हैं और ईश्वर पर जिनकी भक्ति नहीं है उनकी बातें उलझनदार होती हैं। समध्यायी नाम के एक पण्डित ने कहा था , ' ईश्वर नीरस है , तुम लोग अपनी भक्ति और प्रेम के द्वारा उसे सरस कर लो। ' जिन्हें वेदों ने ' रसस्वरूप' कहा हिअ , उन्हें नीरस बतलाता है ! ऐसे ज्ञात होता है के वह मनुष्य नहीं जानता ईश्वर कौन सी वस्तु हैं , इसीलिए उसकी बातें इतनी उलझनदार हैं।
एक ने कहा था , मेरे मामा के यहाँ घोड़ों की एक बड़ी गोशाला है ! उसकी इस बात से समझना चाहिए कि धोड़ा एक भी नहीं है; क्योंकि घोड़े कभी गोशाला में नहीं रहते।
-बोधकथाएँ-
अमृत-वाणी
No comments:
Post a Comment