गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं-
"अहंकार अति दुखद डमरूआ
दंभ कपट मद मान नेहरूआ।"
अर्थात: अहंकार अत्यंत दुःख देने वाला डमरू (गांठ का) रोग है। दम्भ, कपट, मद और मान नहरुआ (नसों का) रोग है इस गांठ यानी रोग से बचो।
एक दिन एक सांप, एक बढ़ई की औजारों वाली बोरी में घुस गया। घुसते समय, बोरी में रखी हुई बढ़ई की आरी उसके शरीर में चुभ गई। इससे सांप के शरीर में घाव हो गया और उसे दर्द होने लगा। दर्द से वह विचलित हो उठा। गुस्से में उसने, उस आरी को अपने दोनों जबड़ों में जोर से दबा दिया। अब उसके मुख में भी घाव हो गया और खून निकलने लगा। अब दर्द से परेशान होकर सांप क्रोधित हो उठा और उसने आरी को सबक सिखाने की ठानी। उसने अपना पूरा शरीर उस आरी के ऊपर लपेट लिया और पूरी ताकत के साथ उसको जकड़ लिया। इससे उस सांप का सारा शरीर जगह-जगह से कट गया। अंततः उसकी मृत्यु हो गई। ठीक इसी प्रकार कई बार, हम तनिक सा आहत होने पर आवेश में आकर सामने वाले को सबक सिखाने के लिए, अपने आप को अत्यधिक नुकसान पहुंचा लेते हैं।
"ज्ञान और शिक्षा, हमारे जीवन में हमारा मार्गदर्शन करते हैं, और हमारे विवेक को जागृत करते हैं। यह जरूरी नहीं कि हमें हर बात की प्रतिक्रिया देनी है, हमें दूसरों की गलतियों को नजर अंदाज करते हुए, अपने परम पथ पर अग्रसर होना चाहिए। दूसरे को उसकी गलती की सजा देने के लिए हम अपने लक्ष्य और पथ से विचलित हो सकते हैं जैसा उस सांप ने किया, क्योंकि यहां गलती सांप की थी, लेकिन वो अपने अहम के कारण आरी को दोषी मानते हुए उसे सजा देना चाहता था।"
ऊं तत्सत...
"अहंकार अति दुखद डमरूआ
दंभ कपट मद मान नेहरूआ।"
अर्थात: अहंकार अत्यंत दुःख देने वाला डमरू (गांठ का) रोग है। दम्भ, कपट, मद और मान नहरुआ (नसों का) रोग है इस गांठ यानी रोग से बचो।
एक दिन एक सांप, एक बढ़ई की औजारों वाली बोरी में घुस गया। घुसते समय, बोरी में रखी हुई बढ़ई की आरी उसके शरीर में चुभ गई। इससे सांप के शरीर में घाव हो गया और उसे दर्द होने लगा। दर्द से वह विचलित हो उठा। गुस्से में उसने, उस आरी को अपने दोनों जबड़ों में जोर से दबा दिया। अब उसके मुख में भी घाव हो गया और खून निकलने लगा। अब दर्द से परेशान होकर सांप क्रोधित हो उठा और उसने आरी को सबक सिखाने की ठानी। उसने अपना पूरा शरीर उस आरी के ऊपर लपेट लिया और पूरी ताकत के साथ उसको जकड़ लिया। इससे उस सांप का सारा शरीर जगह-जगह से कट गया। अंततः उसकी मृत्यु हो गई। ठीक इसी प्रकार कई बार, हम तनिक सा आहत होने पर आवेश में आकर सामने वाले को सबक सिखाने के लिए, अपने आप को अत्यधिक नुकसान पहुंचा लेते हैं।
"ज्ञान और शिक्षा, हमारे जीवन में हमारा मार्गदर्शन करते हैं, और हमारे विवेक को जागृत करते हैं। यह जरूरी नहीं कि हमें हर बात की प्रतिक्रिया देनी है, हमें दूसरों की गलतियों को नजर अंदाज करते हुए, अपने परम पथ पर अग्रसर होना चाहिए। दूसरे को उसकी गलती की सजा देने के लिए हम अपने लक्ष्य और पथ से विचलित हो सकते हैं जैसा उस सांप ने किया, क्योंकि यहां गलती सांप की थी, लेकिन वो अपने अहम के कारण आरी को दोषी मानते हुए उसे सजा देना चाहता था।"
ऊं तत्सत...
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