शिष्टाचार की साधारण रस्में समाप्त हो जाने के बाद सम्राट ने पूछा- “महाशय, मैंने आपके परिवार की एकता और सौहार्द की कई कहानियां सुनी हैं। क्या आप बताएंगे कि एक हजार से भी अधिक व्यक्तियों वाले आपके परिवार में यह स्नेह संबंध कैसे बना हुआ है?”ओ-चो-सान वृद्धावस्था के कारण अधिक देर तक बातें करने में असमर्थ थे। उन्होंने अपने एक पोते को संकेत से कलम-दवात और कागज लाने के लिए कहा। उन चीजों के आ जाने पर उसने अपने कांपते हाथों से कोई सौ शब्द लिखकर कागज सम्राट की ओर बढ़ा दिया।
सम्राट ने उत्सुकतावश कागज पर नजर डाली, तो चकित रह गए। कागज में एक ही शब्द को सौ बार लिखा गया था-‛सहनशीलता,सहनशीलता, सहनशीलता’। सम्राट को चकित और अवाक देखकर ओ-चो-सान ने अपनी कांपती हुई आवाज में कहा-“महाराज, मेरे परिवार की एकता का रहस्य बस इसी एक शब्द में निहित है। सहनशीलता का यह महामंत्र ही हमारे बीच एकता का धागा अब तक पिरोये हुए है। इस महामंत्र को जितनी बार दोहराया जाए, कम है।”
ऊं तत्सत…
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