आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास
देश में हर कोई अपने काम से असंतुष्ट है। रोजमर्रा की भागम-दौड़ और दो जून की रोटी कमाने में सभी के पसीने छूट जाते हैं। ऐसे में, जब हर तरफ देश की अव्यवस्था ने लोगों का जीना दूभर कर रखा है, केवल कुछ लोग इस धरातल पर फलती-फूलती अव्यवस्था से ऊपर हैं। अव्यवस्था से ऊपर इन लोगों को बड़े आराम से पहचाना जा सकता है। ये प्रतिदिन टीवी पर लोगों को उपदेश और देश के भाग्य को कैसे संवारा जा सकता है, इसका ज्ञान देते नजर आते हैं। इन परजीवियों को संगठित रूप में बड़े व्यापारी, फिल्म स्टार, और मुख्यतः राजनेताओं में बांटा जा सकता है।
आरंभिक दो, तीसरे के ही पक्षकार हैं और इन्हीं के भरोसे अपना उत्कृष्ट जीवन निर्वाह करते हैं। वैसे तो, धरातल पर जीवन निर्वाह करते लोगों के भी यही पालनहार हैं, पर उनसे इनका संबंध मालिक और सेवक के सामन ज्यादा अच्छी तरह से समझना चाहिए। व्यवस्था ऐसी बनाई गई है कि मालिक का चेहरा हर पांच साल में बदल सकता हैं और इस प्रकार सेवक अपने मालिक से नाराजगी जाहिर कर सकते हैं। कुछ समय पूर्व इसी परिवर्तन का सहारा ले, देश में कुछ राम भक्त सत्ता में प्रविष्ट कर गए। मालिक जब राम भक्त हुए, तो सेवकों में भी राम भक्ति का क्रेज अत्यधिक मात्रा में फलता-फूलता नजर आने लगा। जिस सेवक को भी देखों वह अपनी अव्यवस्थित जीवन के नित्य कर्म से ऊपर उठकर राम भक्ति करने लगा। मालिक ने जब देखा कि सेवक गण की श्रद्धा अब राम में पूर्ण रूप से प्रविष्ट कर गई है, तो उसने सभी जगहों की व्यवस्था परिवर्तन का बीड़ा उठा लिया। पूर्व सत्ता के संगठन से मुक्त करने का संकल्प लिया जाने लगा और चहुओर राम-राज्य आया ही ऐसा प्रतीत होने लगा।
पर जीवन का एक ही सच है 'जो बोओगे वही काटोगे'। जल्द ही आधुनिक राम-राज्य का सच बाहर आ गया। इस आधुनिक राम राज्य में मालिकों ने कुछ ऐसी व्यवस्था की कि देश की सभी कार्यप्रणाली निजी हाथों में आ जाए। राम तो बनवास से नहीं लौटे। हां! इतना जरूर हुआ कि इन मालिकों के पक्षकार व्यापारियों की चांदी आ गई। द्वेष, ईर्ष्या, घमण्ड का जो बीज इस आधुनिक राम-राज्य को लाने में मालिकों द्वारा बोया गया, आज उसी की परिणीति सामने आ रही है। सेवकों ने इस बार कुछ जगहों से संगठित रूप में इन मालिकों का चेहरा परिवर्तित कर दिया है और सेवकों ने अपने विवेकानुसार बुरों की टोली में से कम बुरे को चयनित कर लिया है।
■ सिद्धार्थ सिंह
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