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हर ठौर गुजरी आहिस्ते से 

हस्ती-खिलखिलाती रुककर खींचती अंगड़ाइयाँ लेते 

'सिफ़र' कई और सफर है तुझी से रूबरू 

साथ ही रहना ऐ जिंदगी; हमसफ़र बनकर........ 

'मिर्ज़ापुर' बड़ा ही दिलचस्प जिला है; बनारस से लगभग 60 किमी दक्षिण-पश्चिम में माँ गंगा के किनारे बसा मुख्य शहर और बीहड़ पहाड़ियों में छोटे-बड़े बसे अनगिनत बस्तियों वाला। चट्टानों से अठखेलियाँ करते जूझते बनते-बिगड़ते अनगिनत बरसाती और सदानीरा पहाड़ी झड़ने, पथरीले वीराने में अटके दिन-रात, गांव, जंगल, जनावर, मंदिर-मस्जिद, आमिर-ग़रीब; बहुत कुछ वैसा ही जैसा दुनियां के किसी और कोने सा। बस एक बात है जो इसे औरो से अलग करता है वो है प्रकृति की गोद मे बैठा एकटक निहारता शाम का सख्त सन्नाटा जो सूरज के साथ ही ढलते बढ़ता जाता है, रात होते घुप्प अँधेरे में खो जाने को बोझिल बनते-बिगड़ते किसी भी जगह बनने वाले फ़रेबी सपनों में। यकीन मानिए इन कुछ दिलकश लम्हों को अगर करीब से जीना है तो यही आना होगा-भेड़चाल की कश्मक़श से ऊबकर। इन चंद लम्हों के सन्नाटे में वो सबकुछ है जिसे शायद कभी किसी शायर ने लिखा हो या जीवन की सघन समझ रखने वाले किसी कवि या दार्शनिक ने यूं ही झूमकर बतलाया हो।  

देसी बोल है 'मिर्ज़ापुरी बगल में छूरी' कुछ ऐसे ही लोग भी है स्याह जिंदगी की सच्चाई से रूबरू हुए, जानते है - अच्छाई भली थी जीने को जबतक धरती पर इंसान रहते थे अब तो हम है। वैसे तो यहाँ देखने, करने और जीने को बहुत कुछ है जैसे माँ विंध्यावासनी का दरबार, माँ गंगा का किनारा, पहाड़ी सुबह-शाम, गांव, जंगल, जानवर, प्रागैतिहासिक गुफाएँ, ऐतिहासिक किले, रजवाड़ों की हवेलियां, गांव, झड़ने, पास बसे फॉसिल और रेत में लिपटा मिनी गोआ। पर इस बार इस घुमक्कड़ से आपका साथ मिर्ज़ापुर मुख्य राजमार्ग को काटते हुए गुजरे सिरसी बांध और झड़ने का है। 

बात बीते साल की है, जब हमारे अभिन्न मित्र पहुंचे मिर्ज़ापुर दर्शन को तो हमलोगों ने झटपट प्लान बनाया सिरसी का। प्रकृति की गोद में बैठा एक मनोरम स्थल। दूर तक फैला डैम का पानी और झड़ने से निर्बाह बहता जलरूपी अथाह प्रेम और जीवन।  सड़क पर दौड़ती मोटरबाईक और दिल में कौतुहल लिए, हम सभी पहुंच गए सिरसी। मिर्ज़ापुर शहर से रास्ता करीब 2.5 घण्टे का है राबर्ट्सगंज-सोनभद्र मुख्य राजमार्ग से रास्ता मड़िहान से पहले कटता है जो पथरीले गांव और पहाड़ी इलाकों से होता सीधे सिरसी पहुँचता है। सिरसी डैम एक वृहद् भूमिका है जिससे आभास होता है किसी बड़े झील का, मोहक पहाड़ियों से घिरा, जिसके एक छोर का पता ही नहीं लगता। डैम का पानी मुख्य रूप से कृषि कार्य की सिंचाई में प्रयोग होता है और साल भर बना रहता है। डैम को पार कर रास्ता सिरसी फॉल को पहुंच जाता है। पथरीली संरचना है जहां एक ओर तो पानी डैम को जाता है और दूसरी ओर प्रवाह अवरुद्ध है। आप झड़ने के हर ढलान को ऊपर से घूम कर देख सकते है और नीचे उतरकर बनी छोटी झील का भी आनंद ले सकते है। जगह बिलकुल ही बियाबान है और खासकर गर्मियों के मौसम में तो यहाँ विरले ही कोई आता होगा जब चट्टानें तप्त सूर्य सा जलती है। 

ट्रैकिंग और एडवेंचर से भरा दिन खूब बीता। शाम को वहीं पर भोजन और धुंधलके में बाईक की रौशनी में हम पथरीले रास्तों से गुजरते वापस लौटे। सिरसी की बियाबान पहाड़ियों में बैठकर ढ़लते सूरज को देखना एक नैसर्गिक अनुभव है। 

वर्तमान में राज्य सरकार सैलानियों के बोटिंग, एडवेंचर स्पोर्ट्स और विभिन्न पर्यटन सम्बंधी क्रियाकलापों के लिए डैम को प्रयोग में लाने के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार कर रही है। रोपवे और स्काईवे भी इन्हीं कुछेक भविष्य के प्रयास होंगे। 

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