यत्र कुत्रापि वा काश्यां मरणे स महेश्वरः।
जन्तोर्दक्षिणकर्णे तु मत्तारं समुपादिशेत्।।
( मुक्तिकोपनिषद्)
काशी में कहीं भी मरने पर भगवान शंकर प्राणियों के दाहिने कान में तारक मंत्र का उपदेश देते हैं। उपदेश प्राप्त करते ही प्राणी तत्काल मुक्ति को प्राप्त हो जाता है।
अतएव मुक्ति की कामना रखने वालों को चाहिए कि सविधि काशीवास करें तथा कभी भी काशी को छोड़कर अन्यत्र न जाय। शास्त्रों के अनुसार-
तीर्थार्थो न बहिर्गच्छेन देवर्थी कदाचन।
सर्वतीर्थानि देवाश्च वसन्त्यत्रा विमुक्ते।।
अविमुक्त समासाद्य न त्यजेन्मोक्षकामुकः।।
अर्थात् तीर्थाटन तथा देवदर्शन के लिए भी काशी से बाहर कभी भी नहीँ जाना चाहिए, क्योंकि सम्पूर्ण तीर्थ एवं देवता काशी में विराजमान हैं। मोक्ष चाहने वाले लोगों को कभी भी अविमुक्त क्षेत्र काशी का परित्याग नहीँ करना चाहिए। काशी अद्भुत महिमाशालिनी है, इसकी महिमा का जितना गुणगान किया जाए कम है, क्योंकि काशी अकथनीय, अवर्णनीय एवं अतुलनीय है।
काशी देवता, मनुष्य, मुनि, नाग, सिद्ध और सज्जनों का कल्याण करती है। काशी दर्शन होते ही दुःख-दोष, पाप-ताप और दरिद्रता का नाश हो जाता है। यह स्मरण करने वालों के पापों तथा दैहिक, दैविक, भौतिक इन तीनों को समूल विनष्ट कर देती है। आनन्द और मनोकामनाओं के फलों से फली हुई, कल्पलता के सदृश्य यह पृथ्वी पर शोभित हो रही है। यदि काशी न होती तो पता नहीँ कलयुग क्या-क्या अनर्थ करता और कलिकाल से पीड़ित व्यक्ति घोर अपार संसार सागर से कैसे तैरता? काशी भुक्ति-मुक्ति दोनोँ ही प्रदान करती है। भक्तों का भय दूर करने के लिए यह साक्षात् कालिका है।
जीव के शुभ-अशुभ कर्मों के नाश के लिए काशी ऊसर भूमि सदृश्य है, जिसका केवल नाम ले लेने से ही ब्रह्म हत्यादि पातक, पापीजन को छोड़ भागते हैं। इस संसार में उस काशी की उपमा किससे दी जाए, यह काशीपुरी देवाधिदेव महादेव जी का साक्षात् श्रीविग्रह है।
(काशी का माहात्म्य)
No comments:
Post a Comment