प्राचीन तथा आध्यात्मिक नगरी काशी को एक बार कृष्ण के क्रोध का भाजन बनना पड़ा था। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से काशी को भस्म भी कर दिया था और फिर से यह नगरी बसाई गई
दरअसल ऐसा उन्हें एक घटना के बाद करना पड़ा। इस कथा का संबंध जरासंध से है। मगध का शासक जरासंध बहुत शक्तिशाली और क्रूर था। उसकी विशाल सेना पल भर में बड़े-बड़े साम्राज्यों को धराशायी कर सकती थी। इसलिए सभी राजा जरासंध से डरते थे और उससे मित्रता रखना चाहते थे।
जरासंध की दो बेटियां भी थीं। उनका नाम - अस्ति और प्रस्ति था। उन दोनों का विवाह कंस से हुआ था, जो मथुरा का राजा और श्रीकृष्ण का मामा था। श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया, तब यह खबर सुनकर जरासंध बहुत क्रोधित हो गया। वह कृष्ण को पराजित करना चाहता था, इसलिए अपनी सेना लेकर मथुरा की ओर चला। उसने कई बार मथुरा पर हमला किया, लेकिन भगवान के सामने उसकी हर चाल विफल हुई। वह अनेक बार कृष्ण के हाथों से हारा और भगवान ने भी उसे जीवित छोड़ दिया।
जरासंध ने अपनी दुष्टता नहीं छोड़ी। उसने कलिंगराज पौंड्रक और काशीराज को साथ लेकर मथुरा पर फिर हमला किया। हमेशा की तरह इस बार भी जरासंध की हार हुई। किसी तरह जरासंध भागने में कामयाब हो गया। पौंड्रक और काशीराज का भगवान ने वध कर दिया।
काशीराज की मौत के बाद उसका बेटा काशी का राजा बना। उसने भगवान को पराजित करने की प्रतिज्ञा की। वह भगवान शिव की तपस्या करने लगा। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ प्रकट हुए। उसने श्रीकृष्ण को समाप्त करने के लिए वरदान मांगा। शिव ने कहा, कोई और वर मांग लो, लेकिन काशीराज अपने हठ पर डटा रहा। आखिरकार भगवान शिव ने उसे एक अत्यंत भयंकर कृत्या वरदान में दी और बोले, इसका प्रहार किसी भी प्राणी का अंत कर सकता है, लेकिन इसका प्रयोग कभी किसी ब्राह्मण भक्त पर मत करना।
इस दौरान कृष्ण द्वारिका आ गए थे। काशीराज अपने खोटे मंसूबे जल्द पूरे करना चाहता था। उसने कृत्या को आदेश दिया कि वह द्वारिका की ओर जाए तथा कृष्ण को लक्ष्य बनाए। कृत्या को आदेश का इंतजार था। वह चल पड़ी।
काशीराज ने कृत्या को भेज दिया, लेकिन वह नहीं जानता था कि कृष्ण ब्राह्मण भक्त हैं। इसलिए कृत्या शिव के वरदान के अनुसार उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकी। उधर, कृष्ण ने द्वारिका की सुरक्षा के लिए सुदर्शन चक्र चला दिया। सुदर्शन काशी की ओर चल दिया।
सुदर्शन ने सबसे पहले कृत्या को भस्म किया। फिर उसने काशी को भस्म कर दिया। बाद में यह नगरी पुनः बसाई गई। वारा और असि नदियों के बीच होने के कारण इसका नाम वाराणसी हुआ। यह काशी का पुनर्जन्म माना जाता है।
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