बनारसी साड़ी
काशी का क्षेत्र पुरातन काल से ही अपनी विभिन्न प्रकार की हस्तकलाओं के लिए विश्व विख्यात रहा है। आज भी ये क्षेत्र अपनी पहचान बचाने में सफल है और तीव्र गति से बदलती अर्थव्यवस्था में अपनी जगह मजबूत कर रहा है। लकड़ी के खिलौने, कालीन उद्द्योग, ताम्बे-पीतल का काम, चाँदी का वर्क, कलमकारी, कागज उद्द्योग इत्यादि अभी भी यहाँ की पहचान है। इन सब में सबसे महत्वपूर्ण है साड़ी उद्द्योग।
बनारसी साड़ी |
बनारसी साड़ी एक विशेष प्रकार की साड़ी है जिसे विवाह आदि शुभ अवसरों पर पहना जाता है। वाराणसी के आस-पास चंदौली, जौनपुर, आजमगढ़, मिर्जापुर और संत रविदासनगर जिले में भी बनारसी साड़ियाँ बनाई जाती हैं। इसका कच्चा माल बनारस से ही जाता है।
रेशम की साड़ियों पर बनारस में बुनाई के संग ज़री के डिजाइन मिलाकर बुनने से तैयार होने वाली सुंदर रेशमी साड़ी को बनारसी रेशमी साड़ी कहते हैं। ये पारंपरिक काम सदियों से चला आ रहा है और विश्वप्रसिद्ध है। कभी इसमें शुद्ध सोने की ज़री का प्रयोग होता था, किंतु बढ़ती कीमत को देखते हुए नकली चमकदार ज़री का काम भी जोरों पर चालू है। इनमें अनेक प्रकार के नमूने बनाये जाते हैं। इन्हें 'मोटिफ' कहते हैं। बहुत तरह के मोटिफों का प्रचलन चल पड़ा है, परन्तु कुछ प्रमुख परम्परागत मोटिफ जो आज भी अपनी बनारसी पहचान बनाए हुए हैं, जैसे बूटी, बूटा, कोनिया, बेल, जाल और जंगला, झालर आदि।
बनारसी साड़ी का आंचल और बार्डर |
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