अमृत -वाणी 'उधर भागवत कथा सुन रहे मित्र के मन में सुंदर स्त्री का नृत्य न देख सकने की व्यथा ही भरी हुयी थी।...' - Kashi Patrika

अमृत -वाणी 'उधर भागवत कथा सुन रहे मित्र के मन में सुंदर स्त्री का नृत्य न देख सकने की व्यथा ही भरी हुयी थी।...'

जैसा भाव होता है वैसा ही लाभ भी होता है 


रास्ते में दो मित्र जा रहे थे।  एक जगह भागवत पाठ चल रहा था। एक मित्र ने दूसरे से कहा चलो भगवन की महिमा सुन लेते हैं।  
दूसरे मित्र ने पास ही नृत्य देखने का मन बना लिया और उधर चला गया।  पर स्त्री का नृत्य देखते हुए भी उसके मन में भागवत कथा सुनते होने की इच्छा ही बार-बार आ रही थी।  वह सोच रहा था मेरा मित्र कितने भाव से भगवन को सुन रहा होगा।  
उधर भागवत कथा सुन रहे मित्र के मन में सुंदर स्त्री का नृत्य न देख सकने की व्यथा ही भरी हुयी थी।  वह कल्पना में नृत्य ही देख रहा था। 

जब दोनों मित्रों का देहावसान हुआ तब जो भागवत कथा सुनरहा था उसको तो यमदूत लगाया और जो स्त्री का नृत्य देख रहा था उसको विष्णु के दूत वैकुण्ड ले गएँ। 

भगवान मन देखतें हैं।  कौन क्या कर रहा है , कहाँ पड़ा हुआ है , यह नहीं देखतें। 


 बोधकथाएँ 

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