बदलाव के जिस दौर से भारतीय राजनीति गुजर रही हैं और आरोप प्रत्यारोप का जो दौर चल रहा हैं वो लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय हैं। आज हर मुद्दे पर सरकार और विपक्ष के सहयोगी बड़ी संख्या में लोगों को सोशल मिडियां व् अख़बारों के माद्ध्यम से प्रभावित करने का प्रयास कर रहें हैं। और कमोबेष ये स्थिति पैदा हो रही हैं कि हर मुद्दा ही राष्ट्रीय हो जा रहा हैं। ऐसे में हर मुद्दे का निपटारा सुप्रीम कोर्ट के माद्ध्यम से हो ये भी सम्भव नहीं। पर हो कुछ ऐसा ही रहा हैं। समाज में रचनात्मकता का हास इस स्तर पर पहुंच गया हैं कि लोगों के एक मात्र नायक या खलनायक केवल राजनीतिक व्यक्ति बनकर रह गए हैं। ये लोगों के राजनीतिक दलों पर बनने वाले विश्वास को जड़ से कमजोर कर रहा हैं।
प्रसिद्धि पाने की चाह और ख़बरों में बने रहने की आस में हर राजनीतिक दल का नेता खुद को प्रचारित करने में लगा हैं और अख़बारों से सामाजिक सरोकारों के मुद्दे और समाज के कर्णधार गायब होते जा रहें हैं। अगर यही स्थिति कुछ और समय तक बनी रहती हैं तो लोगों में आम जन के मुद्दों पर होने वाली बहसों का दौर बीते दिनों की बात होकर रह जाएगी। इससे जहाँ एक ओर लोगों में राजनीति के प्रति लगाव दिखता है तो वही दूसरी और हो रहे भ्रस्टाचारों पर आँखे मूंद लेना भी दिखता हैं। आज सभी राजनीतिक भाषणों और प्रचारों के मुद्दे पर खुद को समर्पित करते नजर आ रहें हैं जो लोकतंत्र के लिए सबसे घातक हैं जहाँ आम जन अपने मुख्य मुद्दों को भूल कर राजनीतिक दलों के मकड़जाल में फसते नजर आ रहें हैं।
हालिया चुनावों में ईवीएम का मुद्दा इस कदर हावी हुआ की राजनीतिक दलों ने लोगों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया, उनकी मंशा और समझ को तार तार कर दिया गया कि वो सही लोगों का चुनाव कर सकतें हैं। इसके वाबजूद सभी हतप्रभ से राजनीतिक दलों के साथ नजर आए और उनके इस मुद्दे पर भी बहस करते नजर आए। जब आम जन अपने पर ही विश्वास खोने लगें और उसे सबका तारणहार केवल राजनीतिक दाल नजर आए तो समझों लोकतंत्र खतरें में हैं।
-संपादकीय
प्रसिद्धि पाने की चाह और ख़बरों में बने रहने की आस में हर राजनीतिक दल का नेता खुद को प्रचारित करने में लगा हैं और अख़बारों से सामाजिक सरोकारों के मुद्दे और समाज के कर्णधार गायब होते जा रहें हैं। अगर यही स्थिति कुछ और समय तक बनी रहती हैं तो लोगों में आम जन के मुद्दों पर होने वाली बहसों का दौर बीते दिनों की बात होकर रह जाएगी। इससे जहाँ एक ओर लोगों में राजनीति के प्रति लगाव दिखता है तो वही दूसरी और हो रहे भ्रस्टाचारों पर आँखे मूंद लेना भी दिखता हैं। आज सभी राजनीतिक भाषणों और प्रचारों के मुद्दे पर खुद को समर्पित करते नजर आ रहें हैं जो लोकतंत्र के लिए सबसे घातक हैं जहाँ आम जन अपने मुख्य मुद्दों को भूल कर राजनीतिक दलों के मकड़जाल में फसते नजर आ रहें हैं।
हालिया चुनावों में ईवीएम का मुद्दा इस कदर हावी हुआ की राजनीतिक दलों ने लोगों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया, उनकी मंशा और समझ को तार तार कर दिया गया कि वो सही लोगों का चुनाव कर सकतें हैं। इसके वाबजूद सभी हतप्रभ से राजनीतिक दलों के साथ नजर आए और उनके इस मुद्दे पर भी बहस करते नजर आए। जब आम जन अपने पर ही विश्वास खोने लगें और उसे सबका तारणहार केवल राजनीतिक दाल नजर आए तो समझों लोकतंत्र खतरें में हैं।
-संपादकीय


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