किसी दिन एक चिड़िया के घोंसले से छोटी चिडियाँ नीचे गिर गयी। ऐसा प्रायः ही सीढ़ियों पर होता था। कोई नन्हा चिड़िये का बच्चा चोच खोले ची-ची करता रहता। गृहणी उसको बड़े चाव और जुगत से दाना खिला पाती, पानी पिला पाती फ़िर घोंसले के पास सीढ़ियों पर रख आती। लेकिन इस बार जब
बच्चा बड़ा होगया उड़ने के लिए पंख पसार ही नहीं रहा था। कूद कर सीढियां तो चढ़ जाता पर दिन बीतने पर भी उड़ना न सीख पाया। अब गृहणी को उसकी बहुत चिंता होने लगी। उसको घर के पालतू कुत्तो और घर मे आने वाली बिल्लियों से कहा तक़ बचाये। दोपह को चिड़ियां सीढ़ियों से कूद कर कुत्तों के पास जा बैठी। जैसा के ग्रहणी की नज़र उसपर रहती ही, वह उसे उठाने बढ़ी। ये क्या चिड़िया दरवाज़े से निकल गलीमें फुदकने लगी। गृहणी बिल्ली के भय से वहां से भी उसको उठाने लगी तो वह फुदक कर भागी औऱ पास ही सीवर के मुहाने से अंदर कूद गई। शायद अंधेरे को देख चिडिया ने सोचा हो के वह नज़रो में नहीं आएगी। पर यह तो उसके जीवन का अंत था।
गृहणी ख़ुद को कोस रही थी। पछता रही थी। रो रही थी। पर बेचारी उसकी मेहनत से बची रही चिड़िया उसके अति जुड़ाव के कारण आज नहीं रही थी।
ईश्वर ने सब को जीने के लिए साधन सुलभ किये है। अगर उड़ने में देर न करती तो आज चिडियों के भीड़ में पहचानी भी न जा सकती थी। गृहणी को भविष्य का डर इतना था के उसने चिड़ियां के वर्तमान को ही लील लिया।
सीख: समय रहते जीवन की कला सीख लीजिये। अति-आशंकित रहने पर स्वमं के साथ आप दूसरों के जीवन को भी सुनिश्चित करते-करते लील जाते है।
अदिति




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