काशी सत्संग : "जूठा गुड़" - Kashi Patrika

काशी सत्संग : "जूठा गुड़"

एक शादी के निमंत्रण पर जाना था, पर मैं जाना नहीं चाहता था। पहला व्यस्त होने का बहाना, दूसरा गांव की शादी में शामिल होने से बचना.. लेक‌िन घर परिवार का दबाव था, सो जाना पड़ा।
उस दिन शादी की सुबह में काम से बचने के लिए सैर करने के बहाने दो-तीन किलोमीटर दूर जाकर मैं गांव को जाने वाली रोड पर बैठा था, हल्की हवा और सुबह का सुहाना मौसम, बहुत ही अच्छा लग रहा था। पास के खेतों में कुछ गाय चारा खा रही थीं, तभी वहां एक लग्जरी गाड़ी आकर रुकी और उसमें से एक वृद्ध उतरे। अमीरी उसके लिबास और व्यक्तित्व दोनों बयां कर रहे थी।
वे एक पॉलीथिन बैग लेकर वहां बने सीमेंट के चबूतरे पर बैठ गए, पॉलीथिन चबूतरे पर उड़ेल दी, उसमें गुड़ भरा हुआ था, अब उन्होंने आओ-आओ करके पास में मौजूद गायों को बुलाया, सभी गाय पलक झपकते ही उन बुजुर्ग के इर्द-गिर्द ठीक ऐसे आ गईं जैसे कई महीनों बाद बच्चे अपने मां-बाप को घेर लेते हैं। कुछ गाय को वे गुड़ उठाकर खिला रहे थे, तो कुछ स्वयं खा रही थी, वे बड़े प्रेम से उनके सिर पर गले पर हाथ फेर रहे थे।
कुछ ही देर में गाय अधिकांश गुड़ खाकर चली गई, इसके बाद जो हुआ उसे जीवन भर नहीं भुलाया जा सकता। गायों के गुड़ खाने के बाद जो गुड़ बच गया था, वह बुजुर्ग उन टुकड़ों को उठा-उठा कर खाने लगे, मैं उनकी इस क्रिया से अचंभित हुआ, पर उन्होंने बिना किसी परवाह के कई टुकड़े खाए और अपनी गाड़ी की ओर चल पड़े।
मैं दौड़कर उनके नजदीक पहुंचा और बोला अंकलजी क्षमा चाहता हूं, पर अभी जो हुआ उससे मेरा दिमाग घूम गया, क्या आप मेरी इस जिज्ञासा को शांत करेंगे कि आप इतने अमीर होकर भी गाय का जूठा गुड़ क्यों खाए ??
उनके चेहरे पर अब हल्की सी मुस्कान उभरी, उन्होंने कार का गेट वापस बंद किया, मेरे कंधे पर हाथ रख सीमेंट के चबूतरे पर आ बैठे और बोले ये जो तुम गुड़ के जूठे टुकड़े देख रहे हो बेटे, मुझे इनसे स्वादिष्ट आज तक कुछ नहीं लगता। जब भी मुझे वक्त मिलता हैं मैं अक्सर इसी जगह आकर अपनी आत्मा में इस गुड़ की मिठास घोलता हूं।
मैं अब भी नहीं समझा अंकलजी, आखिर ऐसा क्या है इस गुड़ में ??
वे बोले, ये बात आज से कोई 40 साल पहले की है उस वक्त मैं 22 साल का था। घर में जबरदस्त आंतरिक कलह के कारण मैं घर से भाग आया था, दुर्भाग्य वश ट्रेन में कोई मेरा सारा सामान और पैसे चुरा ले गया। इस अजनबी से छोटे शहर में मेरा कोई नहीं था, भीषण गर्मी में खाली जेब के दो दिन भूखे रहकर इधर से उधर भटकता रहा और शाम को भूख मुझे निगलने को आतुर थी।
तब इसी जगह ऐसी ही एक गाय को एक महानुभाव गुड़ डालकर चले गए, यहां एक पीपल का पेड़ हुआ करता था, तब चबूतरा नहीं था। मैं उसी पेड़ की जड़ों पर बैठा भूख से बेहाल हो रहा था, मैंने देखा कि गाय ने गुड़ छुआ तक नहीं और उठकर वहां से चली गई, मैं कुछ देर किंकर्तव्यविमूढ़ सोचता रहा और फिर मैंने वह सारा गुड़ उठा लिया और खा लिया। मेरी मृतप्रायः आत्मा में प्राण से आ गए।
मैं उसी पेड़ की जड़ों में रात भर पड़ा रहा, सुबह जब आंख खुली, तो काफी रोशनी हो चुकी थी, मैं नित्यकर्मो से फारिग हो किसी काम की तलाश में फिर सारा दिन भटकता रहा, पर दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था। एक और थकान भरे दिन ने मुझे वापस उसी जगह निराश भूखा खाली हाथ लौटा दिया। शाम ढल रही थी, कल और आज में कुछ भी तो नहीं बदला था, वही पीपल, वही भूखा मैं और वही गाय।
कुछ ही देर में वहां फिर वही सज्जन आए और कुछ गुड़ की डलिया गाय को डालकर चलते बने, गाय उठी और बिना गुड़ खाए चली गई, मुझे अजीब लगा किंतु बेबस था, सो फिर गुड़ खा लिया और वही सो गया। सुबह फिर काम तलाशने निकला, आज शायद दुर्भाग्य की चादर मेरे सर पर नहीं थी। एक ढाबे पर मुझे काम मिल गया। कुछ दिन बाद जब मालिक ने मुझे पहली पगार दी तो मैंने 1 किलो गुड़ खरीदा और किसी दिव्य शक्ति के वशीभूत 7 किलोमीटर पैदल पैदल चलकर उसी पीपल के पेड़ के नीचे आया।
इधर-उधर नजर दौड़ाई, तो गाय भी दिख गई। मैंने सारा गुड़ उस गाय को डाल दिया, इस बार मैं अपने जीवन में सबसे ज्यादा चौंका, क्योंकि गाय सारा गुड़ खा गई, जिसका मतलब साफ था कि गाय ने 2 दिन जानबूझ कर मेरे लिए गुड़ छोड़ा था। मेरा हृदय भर उठा उस ममतामई स्वरूप की ममता देखकर, मैं रोता हुआ वापस ढाबे पर पहुंचा और बहुत देर तक सोचता रहा, फिर एक दिन मुझे एक फर्म में नौकरी भी मिल गई। दिन पर दिन मैं उन्नति और तरक्की के शिखर चढ़ता गया, शादी हुई बच्चे हुए, आज मैं खुद की पांच फर्म का मालिक हूं। जीवन की इस लंबी यात्रा में मैंने कभी भी उस गाय माता को नहीं भुलाया, मैं अक्सर यहां आता हूं और इन गायों को गुड़ डालकर इनका जूठा गुड़ खाता हूं। मैं लाखों रुपये गौ शालाओं में चंदा भी देता हूं, पर मेरी मृग-तृष्णा मन की शांति यही आकर मिटती है बेटे। वे बहुत भावुक हो पूछे, समझ गए बेटे अब तो तुम।
मैंने सिर हां में हिलाया, वे चल पड़े, गाडी स्टार्ट हुई और निकल गई, मैं उठा उन्हीं टुकड़ों में से एक टुकड़ा उठाया मुंह में डाला और वापस शादी में शिरकत करने सच्चे मन से शामिल हुआ। सचमुच वह कोई साधारण गुड़ नहीं था। उसमें कोई दिव्य मिठास थी, जो जीभ के साथ आत्मा को भी मीठा कर गई थी।
घर आकर गाय के बारे जानने के लिए कुछ किताबें पढ़ने के बाद जाना कि गाय गोलोक की एक अमूल्य निधि है, जिसकी रचना ईश्वर ने मनुष्यों के कल्याणार्थ आशीर्वाद रूप से की है। गोदुग्ध का पान कर मानव ही नहीं अपितु देवगण भी तृप्त होते हैं, इसीलिए गोदुग्ध को ‘अमृत’ कहा जाता है। सभी देवता गोमाता के अमृतरूपी गोदुग्ध का पान करने के लिए गोमाता के शरीर में सदैव निवास करते हैं।
ऋग्वेद में गौ को‘अदिति’ कहा गया है। ‘दिति’ नाम नाश का प्रतीक है और ‘अदिति’ अविनाशी अमृतत्व का नाम है। अत: गौ को ‘अदिति’ कहकर वेद ने अमृतत्व का प्रतीक बताया है।
ऊं तत्सत...

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