मंगलवार का दिन सुबह से कर्नाटक चुनाव परिणाम, सीटों का बढ़ना-घटना, फिर सत्ता पाने की जुगत में ही व्यस्त था, तभी शाम को वाराणसी में निर्माणाधीन फ्लाई ओवर की दो बीम गिरने से हुई मौतों के कारण गमगीन हो गया। शाम के व्यस्ततम समय में घर जल्दी पहुंचने की कसमकस में जुटे लोगों को यह अहसास भी नहीँ था कि कुछ लोगों की लापरवाही की कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकाना पड़ेगा।
वाराणसी में रेलवे स्टेशन के सामने बन रहे फ्लाई ओवर की दो बीम मंगलवार शाम को गिर गई। राहत और बचाव कार्य अभी चल रहा है और अब तक डेढ़ दर्जन शव निकाले जा चुके हैं। अनुमान है कि अभी दर्जनों लोग और फंसे हैं। हादसे के बाद शासन-प्रशासन सभी चुस्त हो गए। प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति ने मरने वालों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की। हादसे की जांच के आदेश भी सीएम आदित्यनाथ की ओर से दे दिया गया। इन सबके बीच एक प्रश्न गौण रह गया कि इन हादसों के लिए कौन जिम्मेदार है? और क्या हादसे होने के बाद उनकी जांच या मुआवजे से ये जान वापस आ सकते हैं। हालही में एलफिंस्टन (मुंबई) में ऐसा बड़ा हादसा हुआ था, तो क्या शासन-प्रशासन लापरवाही की जांच दुर्घटनाओं के बाद ही करती रहेगी।
वाराणसी (मंगलवार) हुए हादसे का कारण सेतु निर्माण निगम लापरवाही से किए कार्य को बताया जा रहा है। चौकाघाट फ्लाई ओवर के लहरतारा तक विस्तारीकरण के दौरान मानकों का कई स्तरों पर खुला उल्लंघन किया जा रहा था। निर्माण की गुणवत्ता के संबंध में प्रशासनिक अफसर समय-समय पर निर्देश तो जारी करते रहे, मगर कभी निर्माण के लिए परिस्थितियों को अनुकूल बनाने में कभी उनकी रूचि नहीं दिखी। निर्माण एजेंसी मनमाने ढंग से आदेशों की अनदेखी कर काम कर रही थी। हालांकि, सेतु निगम के अभियंताओं को निर्देश दिया गया था कि एप्रोच मार्ग के दोनों ओर बैरिकेडिंग की जाए, जिससे कि वाहनों के आने-जाने में सहूलियत हो।
इस संबंध में मंत्री से लगायत कमिश्नर-डीएम ने कई बार चेतावनी भी दी, मगर सेतु निगम के अधिकारी आंखें बंद किए रहे। निर्माण एजेंसी की लापरवाही जारी रही, जिसकी वजह से तमाम वाहन निर्माणाधीन फ्लाई ओवर के ठीक नीचे से गुजर रहे थे, जो हादसे के शिकार हो गए। इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि एप्रोच मार्ग की चौड़ाई इतनी कम है कि वहां पर मात्र एक वाहन के आने-जाने का रास्ता है।
बीते दिनों बनारस दौरे पर आए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस फ्लाई ओवर का निरीक्षण किया था। उन्होंने एप्रोच मार्ग की मरम्मत एवं बैरिकेडिंग के निर्देश दिए थे। कहा था कि इस कार्य में कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए। जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्र ने बीते छह माह में एक दर्जन बार दौरा किया होगा। फिर मानकों पर किसी ने भी ध्यान क्यों नहीं दिया कि निर्माण कार्य कैसे हो रहा है? इंजीनियर मौके पर हैं या नहीं? निर्माण की गुणवत्ता कैसी है, किसी ने इसकी जांच की जरूरत नहीं समझी। बस, काम को जल्द पूरा करने पर सभी का जोर रहा। वहीं, सेतु निगम ने पिछले छह माह के दौरान कई बार ट्रैफिक डायवर्जन के लिए प्रशासन से आग्रह किया ताकि निर्माण निरापद व जल्द हो सके। प्रशासन इसका कोई विकल्प नहीं खोज सका।
बीते दिनों कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने सेतु निगम के अफसरों को मेट्रो की तर्ज पर एप्रोच मार्ग के दोनों ओर मजबूत अस्थायी दीवार खड़ी करने को कहा था। उन्होंने लखनऊ- दिल्ली का उदाहरण देते हुए निर्देश दिया था कि शटरिंग से कम से कम दस फीट की दूरी पर वाहनों का आवागमन कराया जाय। इन सबके बावजूद लापरवाही होती रही, तो इसका जिम्मेदार कौन है? प्रशासन की ओर से ऐसे गैर जिम्मेदार निर्माण एजेंसी के विरुद्ध कड़ा कदम क्यों नहीँ उठाया गया? अब मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री के दौरे से क्या हासिल होगा और कब तक ऐसे हादसे देश में होते रहेंगे, जिसके बाद मुआवजे का मरहम लगाने की कोशिश होती रहेगी। इसकी कीमत आम जन अपनी जान देकर चुकाता रहेगा?
- संपादकीय
वाराणसी में रेलवे स्टेशन के सामने बन रहे फ्लाई ओवर की दो बीम मंगलवार शाम को गिर गई। राहत और बचाव कार्य अभी चल रहा है और अब तक डेढ़ दर्जन शव निकाले जा चुके हैं। अनुमान है कि अभी दर्जनों लोग और फंसे हैं। हादसे के बाद शासन-प्रशासन सभी चुस्त हो गए। प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति ने मरने वालों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की। हादसे की जांच के आदेश भी सीएम आदित्यनाथ की ओर से दे दिया गया। इन सबके बीच एक प्रश्न गौण रह गया कि इन हादसों के लिए कौन जिम्मेदार है? और क्या हादसे होने के बाद उनकी जांच या मुआवजे से ये जान वापस आ सकते हैं। हालही में एलफिंस्टन (मुंबई) में ऐसा बड़ा हादसा हुआ था, तो क्या शासन-प्रशासन लापरवाही की जांच दुर्घटनाओं के बाद ही करती रहेगी।
वाराणसी (मंगलवार) हुए हादसे का कारण सेतु निर्माण निगम लापरवाही से किए कार्य को बताया जा रहा है। चौकाघाट फ्लाई ओवर के लहरतारा तक विस्तारीकरण के दौरान मानकों का कई स्तरों पर खुला उल्लंघन किया जा रहा था। निर्माण की गुणवत्ता के संबंध में प्रशासनिक अफसर समय-समय पर निर्देश तो जारी करते रहे, मगर कभी निर्माण के लिए परिस्थितियों को अनुकूल बनाने में कभी उनकी रूचि नहीं दिखी। निर्माण एजेंसी मनमाने ढंग से आदेशों की अनदेखी कर काम कर रही थी। हालांकि, सेतु निगम के अभियंताओं को निर्देश दिया गया था कि एप्रोच मार्ग के दोनों ओर बैरिकेडिंग की जाए, जिससे कि वाहनों के आने-जाने में सहूलियत हो।
इस संबंध में मंत्री से लगायत कमिश्नर-डीएम ने कई बार चेतावनी भी दी, मगर सेतु निगम के अधिकारी आंखें बंद किए रहे। निर्माण एजेंसी की लापरवाही जारी रही, जिसकी वजह से तमाम वाहन निर्माणाधीन फ्लाई ओवर के ठीक नीचे से गुजर रहे थे, जो हादसे के शिकार हो गए। इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि एप्रोच मार्ग की चौड़ाई इतनी कम है कि वहां पर मात्र एक वाहन के आने-जाने का रास्ता है।
बीते दिनों बनारस दौरे पर आए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस फ्लाई ओवर का निरीक्षण किया था। उन्होंने एप्रोच मार्ग की मरम्मत एवं बैरिकेडिंग के निर्देश दिए थे। कहा था कि इस कार्य में कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए। जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्र ने बीते छह माह में एक दर्जन बार दौरा किया होगा। फिर मानकों पर किसी ने भी ध्यान क्यों नहीं दिया कि निर्माण कार्य कैसे हो रहा है? इंजीनियर मौके पर हैं या नहीं? निर्माण की गुणवत्ता कैसी है, किसी ने इसकी जांच की जरूरत नहीं समझी। बस, काम को जल्द पूरा करने पर सभी का जोर रहा। वहीं, सेतु निगम ने पिछले छह माह के दौरान कई बार ट्रैफिक डायवर्जन के लिए प्रशासन से आग्रह किया ताकि निर्माण निरापद व जल्द हो सके। प्रशासन इसका कोई विकल्प नहीं खोज सका।
बीते दिनों कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने सेतु निगम के अफसरों को मेट्रो की तर्ज पर एप्रोच मार्ग के दोनों ओर मजबूत अस्थायी दीवार खड़ी करने को कहा था। उन्होंने लखनऊ- दिल्ली का उदाहरण देते हुए निर्देश दिया था कि शटरिंग से कम से कम दस फीट की दूरी पर वाहनों का आवागमन कराया जाय। इन सबके बावजूद लापरवाही होती रही, तो इसका जिम्मेदार कौन है? प्रशासन की ओर से ऐसे गैर जिम्मेदार निर्माण एजेंसी के विरुद्ध कड़ा कदम क्यों नहीँ उठाया गया? अब मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री के दौरे से क्या हासिल होगा और कब तक ऐसे हादसे देश में होते रहेंगे, जिसके बाद मुआवजे का मरहम लगाने की कोशिश होती रहेगी। इसकी कीमत आम जन अपनी जान देकर चुकाता रहेगा?
- संपादकीय
No comments:
Post a Comment