एक बहुत ही सुंदर और सुशील कन्या का विवाह एक साधारण से व्यक्तित्व के पुरुष से परिवार ने तय कर दिया। कन्या का मन इस के लिए राजी नहीं था फिर भी माता-पिता की मर्ज़ी को अपना भाग्य मान कर उसने शादी कर ली।
शादी के बाद भी दोनों के बीच का अंतर हर समय स्पष्ट हो ही जाता था। लड़की, सोचने -समझे और निर्णय लेने में अच्छी रहती। क्या पकाना है, कैसे घर चलाना है, मेवा मिष्ठान सब बना लेती। पति को भी अपने सहयोगी की भूमिका से कोई आपत्ति न थी। पत्नी जो पहले सोचा करती थी के पति मुझे टोकेगा, अब और भी आत्मर्विश्वास से घर चला रही थी। बच्चों के आने पर भी उनके विषय में निर्णय पत्नी ही लिया करती थी। समय बीतने पर ,अब यही कन्या जो पति के साधारण व्यक्तित्व और रूप-रंग में कम होने को अपना दुर्भाग्य मान रही थी अब उसे पति की यही चीज़े अपने अनुकूल लगने लगी।
व्याह में वर औऱ वधु का एक दूसरे का पूरक बने रहना उत्तम है। यहाँ एक दूसरे जैसा होना कष्टदायक है।एक दूसरे को पूरा बनाना ही सुखी जीवन की ओर संकेत करता है।
यह कन्या तेजस्वी थी पर पति में वो तेज न था। यदि पति भी बराबर की सोच समझ रखता तो घर में आख़िर एक को मन मार कर चुप बैठ जाना पड़ता।
गृहस्थी में हमें दो ऐसा पक्ष चाहिए होता है जो हर मौक़े पर एक दूसरे के पक्ष को समझ सकने का प्रयास करे। गुण का मिलान ठीक है पर जो गुण नहीं मिलते उसका मिलाप कैसे हो, गृहस्थ को इसी परीक्षा में अच्छे अंकों से उतीर्ण होना होता है। इसके लिए आप भी एक दूसरे की आदतों को अच्छे से समझने का प्रयास करिए।
अदिति
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