मेरे चेहरे पर अब तक कुल जमा चार बार पाउडर लगाया गया है। बचपन में माता जी “राजा बेटा गोरा दिखेगा” कहकर पाउडर पोत देती थीं, वह अलग है। ये चार मौक़े बड़े होने के बाद आए हैं।
पाउडर लगवाने के दो अवसर सगाई और शादी के दिन आए, जो हर पुरुष के जीवन में आते ही हैं। बाक़ी के दो अवसर एक ही जगह मिले, लेकिन उनके बीच क़रीब 20 साल का अंतराल रहा। इनमें से चौथा मौक़ा पिछले हफ़्ते ही मिला।
जब मैं पहले-पहल अख़बार की नौकरी में आया था, तो अँग्रेज़ी के कुछ लेखों का अनुवाद भी मेरे ज़िम्मे हुआ करता था। तब “मेट्रोसेक्शुअल मैन” पढ़कर बड़ा आश्चर्य होता था। एक तो नाम में “सेक्स” और वह भी ऐसा मर्द, जो औरतों की तरह पाउडर-क्रीम-लिपस्टिक-फेशियल में रुचि रखता है! बाबा रे बाबा!!
मैं उस दौर से गुज़रकर आया था, जब हम क़स्बाई लड़कों के लिए साबुन से चेहरा धो लेना और कभी-कभार दाढ़ी बनाकर फेयर एंड लवली लगा लेना ही पर्याप्त हुआ करता था।
लड़कपन के इसी दौर की बात है। कॉलेज छात्र के रूप में भोपाल दूरदर्शन में आयोजित राज्यस्तरीय क्विज में रायपुर-बस्तर संभाग के प्रतिनिधित्व का मौक़ा मिला। और जब शूटिंग से पहले मेकअप आर्टिस्ट ने चेहरे पर पाउडर लगाकर ब्रश फिराया, तो ज़ाहिर है उसकी अनुभूति ही अलग थी।
जो स्टूडियो अब तक टीवी पर ही देखा था, उसमें हम सहमे-से बैठे थे। बड़े, ऊँचे-से हॉल में तेज़ रोशनी, ऐंकरों के लिपे-पुते चेहरे और मप्र की तत्कालीन शिक्षा मंत्री विजयलक्ष्मी साधौ की मौजूदगी। माहौल ऐसा था कि जिन प्रश्नों के जवाब पता थे, हड़बड़ाहट में वो भी ग़लत बोल गए।
शूटिंग के बाद हम सभी को मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग के होटल पलाश ले जाया गया। वहाँ ऐंकर के ख़ूबसूरत चेहरे को निहारते हुए जब सूप का पहला घूँट लिया, तो सिर से पैर तक शरीर त्राहिमाम कर उठा। दरअसल, थर्माकोल के गिलास में कुछ पीने का पहला ही अवसर था और यह आइडिया बिलकुल नहीं था कि बाहर से एकदम सामान्य लगने वाले गिलास में भरी चीज़ इतनी गर्म भी हो सकती है।
साथ का एक लड़का ख़ूबसूरत ऐंकर से कह रहा था कि स्टूडियो में बातचीत करते हुए आप बड़ी सहज लग रही थीं और मैं मन ही मन कह रहा था कि झूठ तो मत बोल बेss! पहले से तैयार संवाद ही तो बोल रही थी। वास्तव में, मैं उस समय तक नहीं जानता था कि इस तरह के “झूठ” कितने ज़रूरी और महत्वपूर्ण होते हैं। समझ तो ख़ैर आज भी नहीं पाया हूँ।
बहरहाल, उस प्रसंग के लगभग 20 बरस बाद, पिछले हफ़्ते एक बार फिर भोपाल दूरदर्शन जाने का मौक़ा मिला। इस बार विशेषज्ञ के तौर पर बुलाया गया था (नोट- लेखक किसी भी विषय में विशेषज्ञ होने का नैतिक दावा नहीं करता, लेकिन पत्रकार होने के चलते उसे स्वाभाविक रूप से कई विषयों का विशेषज्ञ मान लिया जाता है)।
जब मैं मेकअप रूम और स्टूडियो में बैठा, तो बीस साल पहले के तमाम दृश्य घूम गए। वही पाउडर था, वही ब्रश, वैसी ही कोई मेकअप आर्टिस्ट। बस, ऐंकर इस बार महिला नहीं थी, कोई नवयुवक था।
कॉलेज छात्र के बजाय मैं मध्यवय में पहुँच चुका था और चकाचौंध का थोड़ा आदी भी हो चुका था। और फिर, युवक ऐंकर के “सौंदर्य” में अपनी सुध-बुध खो देने की कोई वजह भी नहीं थी, सो उसने और दर्शकों ने जो भी पूछा, मैंने पूरे होशो-हवास में उनके जवाब देने की कोशिश की।
इस तरह, कुल जमा चार बार पाउडर लगवाने की मेरी कहानी पूरी हुई। 😁🙏
(विवेकजी के फेसबुक वॉल से)
वाह! बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteThanks a lot sir.
ReplyDelete