'अमृत-वाणी' -जान- पहचान के बाद हमारा मन ही हमारा सबसे काम का मित्र बन जाता है।... - Kashi Patrika

'अमृत-वाणी' -जान- पहचान के बाद हमारा मन ही हमारा सबसे काम का मित्र बन जाता है।...



मणिका नामक युवती थी जो अपने किसी भी निर्णय से संतुष्ट नहीं रहती थी। निर्णय कर जिस चीज़ को चुनती बाद में उसे दूसरे के न चुन पाने का दुःख होता। अपनी समस्या से वह अब बहुत ही परेशान रहने लगी। हर समय वह दुविधा में ही रहती के किस काम को करू और किस को नहीं। उसकी पीड़ा उसको अब मानसिक रूप से भी डराने लगी। 




किसी ने उसको भगवान की पूजा करने को कहा। लड़की ने ध्यान का सहारा लिया। वह ध्यान लगाने की चेष्टा करने लगी। फिर जाप के लिए पूर्ण रूप से एकाग्रचित बैठने लगी। धीरे-धीरे वह अपने को समझे लगी। अब जब भी उसको कोई दुविधा होती वह स्वमं से एक प्रश्न करती , मेरा मन किस काम को आसानी से करेगा। और उत्तर को चुन लेती। यहाँ मन को आसान लगने वाला काम वह हुआ जो मन को संतुष्ट करे तो लेक़िन सबसे महत्वपूर्ण है के वह मन पर बोझ न बन जाये। मन हमेशा हल्का होना चाहिए। बेचैन मन को शांत करने से जीवन की भागम भाग में भी मन की नैय्या में हलचल नहीं होती और संसार रूपी भवसागर में हम आगे बढ़ते जाते है।
ऐसी प्रकार ध्यान से मणिका भी अब समय के साथ बेहतर हो गयी। अब उसका जीवन नए रूप रंग से सज चुका था। 

उलझन, दुविधा, सब का समाधान तब ही मिलेगा जब हम अपने अंदर के अजनबी को जान लेंगे। जान पहचान के बाद हमारा मन ही हमारा सबसे काम का मित्र बन जाता है। 

अदिति

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