केचिद् वदन्ति धनहीनजनो जघन्यः ।
केचिद् वदन्ति जनहीनजनो जघन्यः ।।
केचिद् वदन्ति दलहीनजनो जघन्यः ।
केचिद् वदन्ति बलहीनजनो जघन्यः ।।
व्यासो वदत्यखिलवेदविशेषविज्ञः ।।
नारायणस्मरणहीनजनो जघन्यः ।।
भावार्थ:- कुछ लोग कहते हैं कि जिसके पास धन नहीं है, वह व्यक्ति निकृष्ट है। कुछ कहते हैं कि जिस व्यक्ति के पास पारिवारिक जन नहीं हैं, वह निकृष्ट है। कुछ व्यक्ति कहते हैं कि जिसके साथ कोई दल नहीं है, वह निकृष्ट (घटिया) है। कुछ कहते हैं कि जिसकी भुजाओं में शक्ति नहीं है, वह घटिया है। वेदविशेष अर्थात् ईश्वर को जानने वाले महर्षि 'वेदव्यास' ने कहा है कि जो ईश्वर को स्मरण नहीं करता वह व्यक्ति निकृष्ट (घटिया) है। जो भक्त पूरी तल्लीनता और श्रद्धा से अपने प्रभु को याद करते हैं, उन्हें भला कौन तकलीफ दे सकता है।
कथानक:- एक बार रूप गोस्वामीजी राधाकुंड के किनारे बैठकर भजन करने में इतने खो गए कि उन्हें ध्यान ही न रहा कि सूरज ठीक सिर के ऊपर आ गए हैं। झुलसाती गर्मी के दिन थे किन्तु रूप गोस्वामीजी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था, वह निरंतर भजन किए ही जा रहे थे।
दूर से आते हुए श्रील सनातन गोस्वामीजी ने देखा कि रूप भाव मग्न होकर भजन कर रहे हैं एवं एक नवयुवती उनके पीछे खड़ी होकर अपनी चुनरी से रूप गोस्वामीजी को छाया किए हुए है।
श्रील सनातन गोस्वामीजी जैसे ही निकट पहुंचे, तो देखा कि वह नवयुवती तपाए हुए सोने के रंग की एवं इतनी सुन्दर थी कि माता लक्ष्मी, पार्वती एवं सरस्वती की सुन्दरता को मिला दिया जाए, तो इस नवयुवती की सुन्दरता के समक्ष तुच्छ जान पड़ते। वह नवयुवती सनातन की ओर देखकर मुस्कुराई और अंतर्ध्यान हो गई।
श्रील सनातन गोस्वामीजी ने रूप को डांटा और कहा तुम्हें तनिक भी ध्यान है कि तुम क्या कर रहे हो?
हम लोग भगवान के सेवक हैं और सेवक का काम है स्वामी की सेवा करना, न कि स्वामी से सेवा स्वीकार करना। अतः तुम इस प्रकार श्रीराधारानी से सेवा कैसे करवा सकते हो, आज ही तुम अपने लिए एक कुटिया बनाओ, ताकि दुबारा श्रीराधारानी को तुम्हारी वजह से कष्ट न उठाना पड़े।
तो ऐसी हैं हमारी करुणामयी, दयामयी श्रीराधिकारानी, भोरे भारे भक्तों पर हाल रीझ जाती हैं। भक्तों की प्यारी राधा राधा राधा राधा राधा..!
ऊं तत्सत...



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