मोदी मतलब जुमला; युवाओं की आम धारणा - Kashi Patrika

मोदी मतलब जुमला; युवाओं की आम धारणा


देश में अयोग्य नेताओं की ऐसे ही कमी नहीं थी कि उसमें एक नाम और जुड़ गया हैं। यह नाम कभी युवा दिलों की धड़कन हुआ करता था। पर बीते चार सालों के मोदी के निराशावादी शासन और जुमलों की नीति ने युवाओं को उन्हें अब तक का सबसे अलोकप्रिय प्रधानमंत्री बना दिया हैं। अगर युवाओं की माने तो आजादी के बाद लगभग सभी प्रधानमंत्रियों ने युवाओं के लिए कुछ न कुछ तो किया हैं पर यह  प्रधानमंत्री मोदी की पहली ऐसी सरकार हैं जिसने पूर्ण बहुमत में रहने के बाद भी युवाओं के साथ छल किया हैं।

आइये जानते हैं पिछले चार सालों में मोदी की नाकामियां; जिसने उन्हें युवाओं के बीच में जुमला प्रधानमंत्री के रूप में चर्चित बना दिया हैं।

मोदी मतलब 'जुमला'

मोदी ने अबतक की शासन व्यवस्था से अलग हट कर अपने भाषणों के माध्यम से सरकार चालने का प्रयास किया हैं। उनका हर भाषण ही फ़िल्मी पर्दे की तरह मेरा वचन ही हैं शासन के रूप में प्रसिद्द हो गया। फिर चाहे रात में अपने भाषण के माध्यम से नोटबंदी का फैसला हो या अपने भाषण के माध्यम से उज्वला योजना का विस्तार। मोदी ने भाषण के माध्यम से ही लोगों में विश्वास जगाया की काले धन की वापसी होगी और देश समृद्ध होगा।

अपने कार्यकाल के चौथे साल में मोदी ने अपने दिए एक इंटरव्यू में युवाओं से रोजगार न मिलने की स्थिति में समोसा बेचने को कहाँ। हलाकि ये एक निजी चैनल को दिया इंटरव्यू था पर लोगों ने उनकी शासन पद्धति को समझते हुए उसे सही मान लिया।

अब जब देश केंद्र की गलत नीतियों के कारण भयंकर बेरोजगारी से और अव्यवस्थित शासन व्यवस्था से जूझ रहा हैं तो युवाओं ने मोदी के भाषण जुमला कहना शुरू कर दिया हैं।

मोदी को अब युवा केवल एक जुमलेबाज राजनेता के रूप में देखते हैं न कि देश को दिशा दिखने वाले प्रधानमंत्री के रूप में।

मोदी मतलब अव्यवस्था 

नरेन्द्र मोदी ने स्किल्ड इंडिया योजना में हुंकार भरी थी कि इस योजना से देश के करोड़ों युवाओं को रोजगार मिलेगा, उन्हें अपना व्यापार खड़ा करने में बड़ी सहायता मिलेगी। मोदी की इस योजना ने आशा तो जगाई थी, पर विश्वास कायम नहीं हो पाया। वैसे इस योजना को सफल बनाने के लिए नरेन्द्र मोदी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है, पर नौकरशाही के जाल के कारण जमीनी स्तर पर यह योजना पहुंचने में असफल हो गई, इसलिए इस योजना के तहत भी युवाओं को रोजगार नहीं मिल सके। कम से कम दो अवसर ऐसे आए हैं जिनमें युवाओं का आक्रोश स्पष्ट तौर पर प्रकट हुआ है। देश की राजधानी में हजारों युवाओं ने प्रधानमंत्री आवास जाने के लिए मार्च किया और सरेआम नरेन्द्र मोदी पर युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया। युवा कई दिनों तक दिल्ली में प्रदर्शन कर डटे रहे।


सी.बी.आई. जांच के आश्वासन के बाद युवाओं ने धरना-प्रदर्शन करना बंद कर दिया पर उनकी नाराजगी समाप्त नहीं हुई है। पहला अवसर एस.एस.सी. के प्रश्न पत्र लीक होने का है। युवाओं का आरोप है कि एस.एस.सी. के प्रवेश परीक्षा पत्र लीक हो जाते हैं, जिसके कारण गरीब और अध्ययनशील युवाओं को सरकारी नौकरियों में अवसर नहीं मिलता है। यह सही है कि कई सरकारी नौकरियां देने वाली परीक्षाओं के प्रश्न पत्र पहले ही लीक हो जाते हैं। युवाओं की मांग रही है कि केन्द्रीय कर्मचारी चयन आयोग को दुरुस्त करके युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का अवसर नहीं दिया जाना चाहिए। युवाओं के आक्रोश को देखते हुए खुद गृहमंत्री राजनाथ सिंह को कूदना पड़ा था। उन्होंने एस.सी.एस. परीक्षा के लीक प्रश्न-पत्र के खिलाफ सी.बी.आई. जांच कराने की घोषणा की थी। फिर भी केन्द्रीय कर्मचारी चयन आयोग के खिलाफ  छात्रों और युवाओं की नाराजगी कम नहीं हुई है।

दूसरा अवसर सी.बी.एस.ई. के पेपर लीक होने का है। यह कांड लोमहर्षक है और छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। सबसे बड़ी बात यह है कि अब छात्रों को फिर से तैयारी करनी होगी, उनके होश उड़े हुए हैं। सी.बी.एस.ई. के परीक्षा प्रश्नपत्र लीक कांड के तार न सिर्फ दिल्ली बल्कि हरियाणा, बिहार और झारखंड से भी जुड़े हुए हैं। इस कांड पर मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कहना था कि सी.बी.एस.ई. के परीक्षा प्रश्न लीक होने से उनकी रात की नींद हराम हो गई है। प्रकाश जावड़ेकर का कथन यह साबित करता है कि प्रसंग कितना भयानक और नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए संहारक है। नरेन्द्र मोदी सरकार भी पुराने ढर्रे पर चल रही है। भ्रष्टाचार और कदाचार पर लीपापोती का खेल जारी है।

ऐसे में मोदी का दिया भाषण याद आता हैं जिसमे उन्होंने कहाँ था कि अधिकारी काम तो करते हैं पर उनसे काम करवाने का हुनर आना चाहिए। युवाओं ने इसे भी मोदी के दिए एक जुमले के रूप में प्रयोग करना शुरू कर दिया हैं।

मोदी मतलब गोलमाल 

निजीकरण की जो विभीषिका आज देश में फैली हैं उसने सभी के होश उड़ा दिए हैं। आज मोदी परोक्ष और अपरोक्ष रूप से व्यापारियों के सबसे बड़े पालनहार के रूप में उभरे हैं। इस वर्ग से युवाओं का अक्सर संघर्ष रहा हैं क्योकि यही से भ्रस्टाचार की सीढ़ी शुरू होती हैं। आज जब-जब मोदी व्यापारियों के हितों को बढ़ावा देने वाले फैसले लेते हैं तो युवाओं में आक्रोश और बढ़ जाता हैं।

अब ऐसे में कयास लगाई जा रही हैं कि जो युवा पीढ़ी मोदी को जुमलेबाज समझती हैं वो 2019 में मोदी को किस तरह सबक सिखाती हैं।

वैसे युवाओं का आंदोलन देश को सदैव दिशा दिखाता आया हैं। युवा क्रांति के, परिवर्तन के प्रतीक होते हैं, युवा खुशफहमियों को तोडऩे वाले होते हैं, सत्ता की ईंट से ईंट बजाने की शक्ति रखते हैं। शहीद भगत सिंह, खुदी राम बोस, तांत्या टोपे जैसे युवाओं ने अंग्रेजी शासन और गुलामी के प्रतीक अंग्रेजों के अहंकार और क्रूरता पर कील ठोंकी थी। सिर्फ  इतना ही नहीं बल्कि गुलामी के खिलाफ युवाओं की फौज खड़ी की थी। आजाद भारत में भी कई उदाहरण हैं जिनमें युवाओं ने सत्ता को धूल चटाई है। जयप्रकाश नारायण आंदोलन के कर्णधार युवा ही थे। पहले यह बिहार आंदोलन के नाम से जाना जाता था।

जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में युवाओं का आंदोलन बिहार से निकल कर देशव्यापी हुआ था। इंदिरा गांधी को आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी थी, युवाओं के तेज से इंदिरा गांधी 1977 में सत्ता से बाहर हो गई थीं। यू.पी.ए.-2 की सरकार को सत्ता से बाहर करने में युवाओं की बड़ी भूमिका थी। अन्ना ने लोकपाल आंदोलन के माध्यम से युवाओं को भ्रष्टाचार और कदाचार तथा राजनीतिक सुधारों के लिए ललकारा था।

:सिद्धार्थ सिंह 

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