मेरी एक पड़ोसन अपने मायके जाने की बात बता रही थीं। बहुत सालों बाद इस गर्मी की छुट्टी में उनके पतिदेव परिवार को बाहर ले जा रहे थें। वह बहुत प्रसन्न थी। अपने मायके के बारे में बाते करतीं वह अतीत में काफ़ी देर तक खोयीं रहीं।
आज लौटने पर उनके पति इनसे मिलने घर आएं और इतने दिनों वह और बच्चे वहाँ कैसे परेशान रहे यह बताने लगे। उनका स्वागत-सत्कार ठीक से नहीं किया गया। रहने की ठीक तरह की व्यवस्था नहीं थी। मुझे उनसे इन सब बातों की अपेक्षा न थी। वह कहे जा रहे थे और मुझे उनकी श्रीमति जी का खिला हुआ चेहरा याद आ रहा था जब उस दिन वह मायके जाने की बात बता रहीं थी मुझे।
मेरी मित्र का यह वर्षो बाद का मायके का फेरा बहुत सुकून औऱ ऊर्जा देने वाली यादें बन सकता था पर संभवतः ये भी एक कड़वा अनुभव और नोंक- झोंक से ज़्यादा का पल नहीं रहा होगा।
पारिवारिक जीवन कोई बड़ी आपदा पर ही एक दूसरे का सहयोग नहीं मांगता। यह तो हर दिन ही साथ माँगता है। जैसे इस सफ़र में पतिदेव को ससुराल की दिक्क़ते गिनाने की जग़ह, 'कोई बात नहीं, सत्कार तो बाहर वालो की अपेक्षा होती है , आख़िर तुम भी तो मेरे घर एडजेस्ट कर ही गयी मै इस छुट्टी में तुम्हारे यहाँ ख़ुशी-ख़ुशी रह लेता हूँ। ' जैसे शब्द बोल कर घर की लक्षमी का मन जीत लेना चाहिए था।
आप पति है पर हर बात में निर्णायक मत बनिये। गृहस्थी सबसे सही ही निर्णय ले इस जैसा टेस्ट नहीं होता। यह तो प्रश्न को कुच्छ ऐसे हल करवाता है,जहाँ खाने में नमक़ ज़्यादा पड़ गया हो तब भी पति स्वादिष्ट बना है बोलता है औऱ पत्नी चखने पर परोसी हुई थाली हटा कर आत्मगाली में पुनः उसकी पसंद की स्वादिष्ठ सब्ज़ी बना कर थाली धीरे से सजा देती है।
अदिति
आज लौटने पर उनके पति इनसे मिलने घर आएं और इतने दिनों वह और बच्चे वहाँ कैसे परेशान रहे यह बताने लगे। उनका स्वागत-सत्कार ठीक से नहीं किया गया। रहने की ठीक तरह की व्यवस्था नहीं थी। मुझे उनसे इन सब बातों की अपेक्षा न थी। वह कहे जा रहे थे और मुझे उनकी श्रीमति जी का खिला हुआ चेहरा याद आ रहा था जब उस दिन वह मायके जाने की बात बता रहीं थी मुझे।
मेरी मित्र का यह वर्षो बाद का मायके का फेरा बहुत सुकून औऱ ऊर्जा देने वाली यादें बन सकता था पर संभवतः ये भी एक कड़वा अनुभव और नोंक- झोंक से ज़्यादा का पल नहीं रहा होगा।
पारिवारिक जीवन कोई बड़ी आपदा पर ही एक दूसरे का सहयोग नहीं मांगता। यह तो हर दिन ही साथ माँगता है। जैसे इस सफ़र में पतिदेव को ससुराल की दिक्क़ते गिनाने की जग़ह, 'कोई बात नहीं, सत्कार तो बाहर वालो की अपेक्षा होती है , आख़िर तुम भी तो मेरे घर एडजेस्ट कर ही गयी मै इस छुट्टी में तुम्हारे यहाँ ख़ुशी-ख़ुशी रह लेता हूँ। ' जैसे शब्द बोल कर घर की लक्षमी का मन जीत लेना चाहिए था।
आप पति है पर हर बात में निर्णायक मत बनिये। गृहस्थी सबसे सही ही निर्णय ले इस जैसा टेस्ट नहीं होता। यह तो प्रश्न को कुच्छ ऐसे हल करवाता है,जहाँ खाने में नमक़ ज़्यादा पड़ गया हो तब भी पति स्वादिष्ट बना है बोलता है औऱ पत्नी चखने पर परोसी हुई थाली हटा कर आत्मगाली में पुनः उसकी पसंद की स्वादिष्ठ सब्ज़ी बना कर थाली धीरे से सजा देती है।
अदिति
Kisi ke bhi jeevan me adjustment krna or ek dusre k feelings ka dhyan rkhne wale hi sbse mahaan hote h... my aise situations ko gender se to jodkr ni dekhta.. lekin jokhim or tkleef to hr kisi k jeevan me asti h.. hskr use taal dena chaiye or adjustment k zariye dusro ko b kabhi kabhi khush rkhna chaiye.. agr duniya ka bhala ho rha h or usme sukoon h to us duniya me my b to sukhi rhunga...
ReplyDeleteतुमने बहुत अच्छी बात लिखी है। और हां मैं भी मानती हूं के परिवार में जेंडर के हिसाब से कोई साही ग़लत नहीं होता या बस पुरुष ही हठधर्मी नहीं होते। बहुत बार समस्या दूसरी तरफ़ से भी उतप्पन होती है । दोनों को ही एक दूसरे को देखते हुय साथ साथ चलना चाहिए। आख़िर में धन्यवाद लेख पढ़ने के लिए।
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