शनिवार का दिन काशीवासियों के लिए खास रहा, क्योंकि बाबा विश्वनाथ की नगरी में उनके आराध्य भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ रथ पर विराजे। काशी के सैकड़ों श्रद्धालु तो इसके साक्षी रहे ही इंद्रदेव भी भगवान जगन्नाथ की अगवानी में पहुंचे और बरसात की बूंदों से प्रभु के रथ का पहिया भीगों कर उनका अभिषेक किया।
रथयात्रा क्षेत्र में लगे इस तीन दिवसीय मेले के साथ ही काशी के लक्खी मेले (जिसमें एक लाख से ज्यादा भक्त भाग लें) की शुरुआत हो गई। पीतांबर में सुशोभित प्रभु के दर्शन के साथ उल्लास के साथ आगे बढ़े हाथ और देवोपम रथ पांच डग खींच कर श्रद्धालुगण निहाल हुए और मंगल कामना की गुहार-जुहार लगाई।
मान्यता है कि बीमारी के बाद स्वास्थ्य होकर प्रभु जगन्नाथ बहन सुभद्रा और दाऊ बलभद्र मनफेर के लिए शहर में सैरसपाटे के लिए निकलते हैं। प्रभु जगन्नाथ की सपरिवार बेनीराम बाग में भोर तीन बजे पीतांबर झांकी सजाई गई। कमल व बेला के फूलों से श्रृंगारित देवोपम अष्टकोणीय रथ पर देव विग्रहों को विराजमान कराया गया। ठीक 5.11 बजे पुजारी पं. राधेश्याम पांडेय ने मंगला आरती की। पट खुले और इस शुभ बेला के इंतजार में खड़े भक्तों ने जयकार से पूरा क्षेत्र गुंजा दिया। झांकी दर्शन पूजन के लिए सुबह से रात तक श्रद्धालुओं का रेला उमड़ता रहा। प्रभु के रथ स्पर्श व परिक्रमा कर भक्तों ने भक्ति भाव को प्रगाढ़ किया। मंदिर के आकार के अष्टकोणीय रथ की छतरी व शिखर को प्रणाम किया। इस 14 पहिए वाले 20 फीट चौड़े, 18 फीट लंबे व इतने ही ऊंचे रथ को शिखर तक पूरी भव्यता से सजाया गया।
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