शब्दों में जादू है,
सुनती भी आयीं हूँ, देखती भी आयीं हूँ।
शब्दों में उलझे लोग, शब्दों को गढ़ते लोग,
शब्दों को अपनी रचनाओं में ढालते लोग,
शब्दों से ख़ुद को , दूसरों को छलते लोग।
शब्दों से भ्रमित होते लोग , शब्दों को ब्रह्म कहते लोग।
देखती भी आयीं हूँ , सुनती भी आयीं हूँ।
पर क्या ब्रह्म जादू है ?
या कि उलझा है, उलझता है ,
गढ़ता है , गढ़वाता है ,
रचता है या रचवाता है ,
छलता है या छलवाता है ,
भ्रमित है या भरमाता है ,
ब्रह्म तो मौन है ,
ध्यान है , सत्य है।
और सत्य कभी बोलता नहीं,
वह होता है।
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