फ़लक से ज़मी तक कुछ भी हमारा नहीं,
सितारों का न शौक है न चाँद की ही कभी ख़्वाहिश की...
फ़लक से ज़मी तक कुछ भी हमारा नहीं,
सितारों का न शौक है न चाँद की ही कभी ख़्वाहिश की,
पेड़-पत्तों और इन मुफ़्त की हरियालियों को
जी भर देखा करते हैं।
उन वादियों में जहाँ जाते हो तुम सैर को ,
मुझसे मिलने जो आना हो , आना उसी पुराने मकान पर ।
नया कुछ भी मेरी रूह तक़ जाता नहीं ,
धूल हाथो से पोंछ कर अभी बैठा हूँ,खिड़की पर;
वही जहाँ तुम से बाते होती थी;
और ठीक वैसे ही चाय प्यालों में ,
ठंढी हो रही है।
प्यालो में पड़ी चाय को;
जैसे मेरे होंठ तक़ पहुँचने का इंतज़ार रहता है,
मैं भी इंतज़ार में रहता हूँ अपने प्यार के।
-अदिति -
No comments:
Post a Comment