'शायरों की दुनियाँ' - फ़लक से ज़मी तक कुछ भी हमारा नहीं.... - Kashi Patrika

'शायरों की दुनियाँ' - फ़लक से ज़मी तक कुछ भी हमारा नहीं....

फ़लक से ज़मी तक कुछ भी हमारा नहीं,
सितारों का न शौक है न चाँद की ही कभी ख़्वाहिश की...




फ़लक से ज़मी तक कुछ भी हमारा नहीं,
सितारों का न शौक है न चाँद की ही कभी ख़्वाहिश की,
पेड़-पत्तों और इन मुफ़्त की हरियालियों को 
जी भर देखा करते हैं। 

उन वादियों में जहाँ जाते हो तुम सैर को ,
मुझसे मिलने जो आना हो , आना उसी पुराने मकान पर । 
नया कुछ भी मेरी रूह तक़ जाता नहीं ,
धूल हाथो से पोंछ कर अभी बैठा हूँ,खिड़की पर;
वही जहाँ तुम से बाते होती थी; 
और ठीक वैसे ही चाय प्यालों में ,
ठंढी हो रही है। 

प्यालो में पड़ी चाय को;
जैसे मेरे होंठ तक़ पहुँचने का इंतज़ार रहता है,
मैं भी इंतज़ार में रहता हूँ अपने प्यार के।  


-अदिति -


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