मुकम्मल मुसलमां और बनारस की बकरीद - Kashi Patrika

मुकम्मल मुसलमां और बनारस की बकरीद


बकरीद विशेष॥ 
बकरीद की तैयारियों के तहत बनारस के बेनियाबाग में बकरा मंडी सज चुकी है। अपनी हैसियत के हिसाब से बकरा खरीदने वालों की यहां रोजाना भीड़ बढ़ रही है। इस बार बकरा मंडी में गाजीपुर से आया एक लाख का बकरा सबके आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
कुर्बानी का पर्व बकरीद 22 अगस्त, बुधवार को है। बकरीद पर कुर्बानी के लिहाज से शहर की प्रसिद्द और सबसे पुरानी बकरा मंडी बेनियाबाग में गहमागहमी बढ़ रही है। यहां पूरे देश से व्यापारी बकरी, बकरा, भेड़ लेकर आए हैं। पिछले साल से महंगे और कुर्बानी के लिए ख़ास महत्व रखने वाले दुम्बे की आमद इस मंडी में अभी नहीं हो पाई है। सहारनपुर से बकरियां लेकर आए मोहम्मद इकबाल ने बताया कि पिछले साल की बनिस्बत इस बार उतनी बारिश नहीं हुई है, फिर भी महंगाई की वजह से खरीदार मंडी में कम आ रहे हैं। जो पहले दो बकरे खरीदते थे, अब एक ही बकरे से संतोष कर ले रहे हैं। बकरा मंडी में इस वर्ष 10 हज़ार से लेकर 1 लाख रुपये तक के बकरे मौजूद हैं। भेड़ें भी बिक रही हैं, जिनकी कीमत 15 हज़ार से लेकर 70 हज़ार रुपये तक है। एक लाख का बकरा लेकर गाज़ीपुर से बेनियाबाग पहुंचे राजू अपने बकरे को पत्ता खिला रहे हैं। उनके बकरे की खासियत जानने के लिए लोगों की भीड़ उन तक पहुंच रही है। कुर्बानी के लिए बकरा खरीद रहे अब्दुलसलाम ने बताया कि मंडी में बहुत बकरे हैं। हमने तीन बकरे लिए हैं, 13 हज़ार और 14 हज़ार में दो बकरे लिए हैं।

कुर्बानी की परंपरा और महत्व 
बकरीद के दिन सूर्योदय के बाद मुस्लिम समाज के लोग नमाज अदा करते हैं, फिर कुर्बानियों का दौर शुरू हो जाता है। कुर्बानी को लेकर धार्मिक मान्यता है कि अल्लाह के बंदे पैगंबर इब्राहिम अलीम को बचपन में ही खुदा के लिए छोड़ दिया गया था। एक बार उन्हें अल्लाह के लिए अपनी सबसे कीमती चीज, जिससे वह सबसे ज्यादा प्यार करते थे उसकी कुर्बानी देने की बात कही गई। तब उन्होंने अपने बेटे के गले पर कुर्बानी के लिए छुरी रखी, जिससे प्रसन्न होकर अल्लाह ने उनके बेटे की जगह पर दुंबा नामक जानवर को रख दिया। यह कुर्बानी अल्लाह के लिए दी जा रही थी, इसलिए यह अल्लाह को बेहद पसंद है। कहते हैं अल्लाह ने खुद दुनिया को हुक्म दिया कि ऐसी कुर्बानी सभी दें, तभी से यह परंपरा बन गई, जिसका निर्वहन मुस्लिम समाज आज भी करता है।
■ काशी पत्रिका

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