फितरती राजनीति के “पॉलिटिकल कमांडो” - Kashi Patrika

फितरती राजनीति के “पॉलिटिकल कमांडो”

बारिश की किचबिच, सावन की भीड़ और मेले की रेलमपेल के बीच पाड़ेजी
की बैठकी जमे थोड़ा लंबा समय सरक गया था। वैसे भी, पाड़ेजी कुछ व्यक्तिगत काम के सिलसिले में प्रयाग चले गए थे। आज लंका पहुंच कर पाड़ेजी पहले से ही चाय की चुस्की ले रहे थे, अधूरी चाय पूरी कराने मित्रगण भी पहुंच गए। किसी ने पाड़ेजी की चुटकी ली, “का गुरु, सब ठीक रहल इलाहाबाद में। कुंभ बदे व्यवस्था दुरुस्त कय अइला।” पाड़ेजी भी मूड में थे, बोले-“तैयारी में बख्त लगी गुरु, ऐसे ही इत्ता बड़ा आयोजन होता है...।” बातचीत अभी शुरू ही हुई थी कि पास की बेंच पर बैठे कुछ लोगों में हो रही चर्चा ने पाड़ेजी का ध्यान खींचा, “ई इंग्लिश बाबू...क दिलचस्पी अचानक काहे हिंदू-मुसलमान में जाग गइल। ऊपर से टोपी के वकालत में काहे सुक्खल जात हउअन। अब कोई...टोपी, कोई नेहरू टोपी तो है नहीं कि मोदीजी वोट खातिर सिरोधार्य कर लें...”। मोदीजी का नाम आते ही पाड़ेजी जैसे छटपटाहट महसूस करने लगे, सो उनसे रुका न गया। उन लोगों की बातचीत बीच में काटकर बोल पड़े, “अरे भई! अब राहुल तो कंफ्यूज हैं कि वोट खातिर कौन सा किवाड़ खटखटाएं, किस-किस से दोस्ती गाठनी है। उनके असमंजस की स्थिति में लोकसभा निकट आता जा रहा है। अब उनकी चुप्पी में बात निकल न जाए हाथ से, तो कमान किसी न किसी को तो संभालना पड़ेगा। वैसे भी, ‛मन मन भाए, मुड़िया हिलाय’ कांग्रेस भी तो हिंदू वोटो को खोने का रिस्क नहीं ले सकती।” 
सबके बीच कोई परमज्ञानी भी बैठे थे, सबकी बात सुनकर बोले, “ऐ खातिर सब दलन ने ‛पॉलिटिकल कमांडो’ पाल रखा है न भाई। फिर थरूर जी यह जिम्मेदारी अपने कंधों पर काहे लादने को उछल पड़े?” ज्ञानी महोदय के सवाल का उत्तर दिए बिना वहां मौजूद लोग ‛पॉलिटिकल कमांडो’ से परिचित होने को उत्सुक हो उठे!! अपनी तरफ सबकी प्रश्नवाचक दृष्टि उठी देख ज्ञानी कुछ आत्ममुग्ध से बोले, “अरे! दिनभर टीवी चैनलों पर पैनलिस्ट बने बैठे रहते हैं न, वही ‛पॉलिटिकल कमांडो’। खबरिया चैनलों के एसी रूम में बैठे ये ‛कमांडो’ तरह-तरह के तर्क-कुतर्क-वितर्क के सहारे हर मुद्दे पर अपनी पार्टी को सही साबित कर उसकी छवि सुधारते हुए स्वयं को जनता का सबसे ज्यादा हितैषी बताने की कोशिश में दिन-रात एक किए रहते हैं। चीखते-चिल्लाते गला सूख जाए, तो दो घूंट पानी निगल फिर पार्टी हित में सार्थक बहस करने में जुट जाते हैं। बीजेपी, कांग्रेस, सपा, बसपा... यहां तक की छोटे क्षेत्रीय दलों के पास भी आजकल ऐसे वाकपटु कमांडो होते हैं। हाँ, ये बात अलग है कि राजनीतिक दलों की हैसियत के हिसाब से इन कमांडों की संख्या होती है...।” 
ज्ञानी महोदय अभी ज्ञान बांट ही रहे थे कि चाय की अगली खेप हाथ में लिए चायवाला लड़का सबको चाय थमाने लगा। गर्म चाय की चुस्की के साथ बात आगे बढ़ी, “इन पॉलिटिकल कमांडो की खासियत यह होती है कि वे हर झूठ-सच को ऐसे आत्मविश्वास के साथ बोलते हैं कि सुनने वाले को रत्ती भर संदेह न हो। और एक बात हर पार्टी का कमांडो अपनी ही बात पर अडिग रहता है। कभी-कभी बहस में जब कमांडो अपनी हार से खीझ जाता है, तो एंकर पर उसका गुस्सा फूट पड़ता है। यदा-कदा चैनल पर ही मारपीट की नौबत भी आ जाती है, लेकिन ‛बदनाम भी होंगे तो नाम न होगा’ की तर्ज पर सब चलता है। तभी तो कुछ पार्टियां इन्हें रखने से पहले इंटरव्यू भी लेती हैं।”  
उन्होंने आगे बताया, “कमांडो की एक और फौज है, जो सोशल मीडिया पर चौकस रहती है। इन्हें आप ‛गुप्त कमांडो’ कह सकते हैं। अपनी पार्टी के हक में ज्यादा से ज्यादा बात करना, योजनाओं आदि के पक्ष में तारीफ करना...जैसे काम करने के साथ ही, दूसरे पक्ष की बातों को झूठा साबित करना इनकी जिम्मेदारी होती है। और पार्टी हित में कई बार इन्हें कुर्बान भी किया जा सकता है।” बैठकी में एक सवाल और उठा, “यानी  बेरोजगार युवक यहां नौकरी तलाश सकते हैं। दिनभर एसी कमरे में बैठने के साथ ही टीवी पर भी दिखने का मौका मिल जाएगा?” 
इस पर ज्ञानी महोदय के माथे पर लकीरें उभर आईं, बोले,“कर तो सकते हैं, लेकिन इसके लिए बड़ी डिग्री धारियों की लाइन लगी है। डॉक्टर तक कमांडो बन रहे हैं, सो उम्मीद कम है आम लोगों के लिए।” चाय वाला फिर नए गिलास के साथ हाजिर था। उसने कहा, “ई बोला भइया, यहां भी हम जैसे आम लोगन के कउनो पूछ नाही ह।” उसकी इस बात का उत्तर किसी के पास नहीं था। सब अपने-अपने गोलबंदी में फिर रम गए। ...और पाड़ेजी इलाहाबाद के अब तक के कायाकल्प के बारे में बताने में व्यस्त हो गए। 
■ सोनी सिंह

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